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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८४ ) ॥ उगणीसें चमोत्तर सुजश सदा सुहावे ॥ म० ॥ ० ॥ १० बरसे । माघ शुदि मन जावे ॥ ० ॥ दशमी रांदेर नगरमा । जिनचैत्ये पधरावे श्री जिन कृपाचंद्र सूरि जक्कें । संत सुयश ० ॥ १३ ॥ इति रांदेर मध्ये जीर्ण चैत्योहारे श्री रिपन जिन विंब प्रतिष्ठा स्तवनं संपूर्ण ॥ ० ॥ ११ ॥ शुदि ॥ म० श० ॥ १२ ॥ मिलगावे ॥ म० ॥ ॥ अथ अष्टमीनुं चैत्यवंदन लिख्यते ॥ ॥ श्रवमदिन आराधिये । प्रवचन माता सार | अष्टसिद्धि सदा । का कुमति कुठार ॥ १ ॥ आम्मद निवारिनें । अष्टकर्म करित । श्रावण सुदि श्राम दिने । पासजी बह्यो जव अंत ||२|| जादरवा वदि में । सुपास चव्या जग जाए। माघ सुदि जन्म्या अजित फागन संजव चव्यां जाए || ३ || चैतर वदि श्रावम रिषन | जन्म दीक्षा वे जाए। वैसाखसित अष्टमी। अभिनंदन निर्वाण ॥ ४ ॥ एहिज तिथी जन्म्या सुमति । जेव वदि मुनिः सुव्रत । श्राषाढ सुदि श्रव । नेमि जिनेसर निर्वृत ॥ ९ ॥ श्रावण वदि आम दिने । नमि जनम्या जिन जाए । पोसह करो पहेरनो । जिम लहो गुण मणि खाल ॥ ६ ॥ अष्टमी इम आराधिये । त्रिकरण करि कठोर । कृपाचंद्रसूरि जवितणा । तूटे कर्म कठोर ॥ 9 ॥ इति अष्टमी चैत्यवंदन || ॥ अथ एकाशीनुं चैत्यवंदन लिख्यते ॥ ॥ श्री मति त्रिभुवन धणी । जन्म दीक्षाने ज्ञान । कयाएक एकादशी । मगसर शुदि मन आण ॥ १ ॥ र पारस For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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