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(१२) वीज दिवस आराधिये ए । ज्ञान तिथी सुविहाण । सूरिकृपाचंज सेवतां । तपथी क्रोम कट्याण ॥ ५ ॥इति वीजतिथीनो चैत्य वंदन संपूर्णम् ॥
॥ अथ श्री पंचमी चैत्यवंदन ॥ ॥ पांच ज्ञान प्रगटायवा । पंचमी तप सुप्रधान । आराधो नबि इकमने । प्रगटे ज्ञान निधान ॥ १ ॥ अवग्रहादिक जाणि यें । मति अघावीश सार चवद वीश नेद श्रुततणा । अवधि उ असंख्य प्रकार ॥२॥ मनःपर्यव उग नेद । केवल सकल प्रकाश । लोका लोक स्वरूपनों । शायक ज्ञान एखास ॥ ३ ॥ सर्वा राधक झानने । लाख्यो श्री जगदीश । सासोस्वासमां कर्मनों दयकरे वीशवावीश ॥४॥ लघु मध्यम उत्कृष्ट पंच। मास वरिस जावजीव । विधि पूर्वक आराधतां । पामे ज्ञानस दीव ॥ ५॥ दोयपरोक्ष प्रत्यक्तीन । श्रुत उपगारी जाण । सूरि कृपाचं प्रणमतां लहिये निर्मल नाण ॥ ६॥ इति पंचमी चैत्यवंदन संपूर्ण ॥
॥अथ श्री पंचमी थुइ लिख्यते ॥ ॥ श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपतिकृतप्राज्यजन्माभिषेक । चंचत्पंचादमत्तविरदमदनिदा पंचवक्रोपमानः । निर्मुक्त पंचदेह्याः परमसुखमयप्रास्तकर्म प्रपंचः । कट्याएं पंचमी सत्तपसि वितनुतां पंचम ज्ञानवान् वः॥१॥ संप्रीणन् सच्चकोरान् शिवतिलक समः कौशिकानंदमूर्तिः। पुण्याब्धि प्रीतिदायी सितरुचिरिव यः स्वीयगोनिस्तमांसि । सांत्राणि ध्वंसमानः सकल कुवलयोसास मुच्चैश्चकार । ज्ञानं पुष्याजिनौषः सत.
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