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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रा । अगर कपूर सुन्न धूपणा जी। करेयं श्री श्रगनि कुमार । वाणव्यंतर हिवे वेगसुं जी। रचे मणिपीठकासार ॥ ७ ॥ था। पुहुप पंच वरण ऊरध मुखे जी। वरपे जानु परिमाण जवणव देव त्रिगमो जलो जी । करय ते सुंणोड सुजाण ॥॥श्रा । रचय गढ प्रथम रूपा तणो जी । सोवन कांगरे सार । रविशशि रयण कोसीसको जी। कनक नो बीय प्राकार॥ए॥श्रामरतन गमरतनने कांगरे जी।रचय वेमाणीय सुर राज । जसो त्रीजो गढ जीतरे जी । जीहां विराजे जिनराज ॥१०॥ था। जीत ऊंची धणु पांचसे जी। सवा तेत्रीस विस्तार । धनुषसे तेर गढ शांतरो जी। प्रौल पंचास धणुघ्यार ॥ ११ ॥ श्रा० । दश पंचपंच त्रिहुंगढतणी जी । पावनी वीस हजार । थाक श्रम नहीय चढतां थकां जी । एक कर उच्च विस्तार ॥ १२ ॥श्रा ।पंच घणु सहस पृथवी थकी जी। उच्च रहै त्रिगढ श्राकाश । तेहतल सहु यथा स्थित वसे जी। नगर श्राराम आवास ॥१३॥आप।तोरण चिहुँशदिस तिहां जी। नीलमणि मोर निरमाण । उसय धणु मध्य मणीपीलिका जी उच्च जिण देह परिमाण ॥ १५ ॥ श्रा० च्यार आसण तिहां चिडं दिसें जी । मोतीयें काक जमाल । सम विचकूण ईसाणमें जी। देव बंदो सुविसाल ॥१५॥ श्रादेव इंउनि नाद उपदिसे जी । जिन गुण गावसी तेह । ब्रह्म जिम आई शिर ऊपरें जी। गाजसी तेह गुण गेह ॥ १६॥ श्रा। ॥ (ढाल) सफलसंसारनी ॥ * ॥ पुवदिशि भासणे या For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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