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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६५ ) चलराज ॥ मनरंग साधु महंतना, गुण गावे रे श्रीजिन राज ॥ या० ॥ ए ॥ गज० सं० ॥ अथ प्रष्णचंद्र सज्झाय ॥ ॥ राज टंकी रलियामणोरे, जांणी थिर संसार | वैरागे मन वालियो, कांइ लीधो संजम जार ॥ प्रष्णचंद प्रभूं तुमारा पाय, तुमे मोटा मुनिराय ॥ प्र० ॥ १ ॥ वनमांहे का सग्ग रह्यो रे, पग ऊपर पगठाय ॥ बांह बेळं उंची करी, सूरज सांमी दृष्टि लगाय ॥ २ ॥ प्र० ॥ श्रेणिक वंदन नीसस्यो रे, वीरजीने वंदन जाय || देइ तीन प्रदक्षिणा, त्रिविध २ खमाय ॥ प्र० ॥ ३ ॥ 5रमुख दूत वचन सुणी रे, कोप चढ्यो ततकाल ॥ मनसुं संग्राम मांगियो, जीव पड्यो जंजाल ॥ प्र० ॥ ४ ॥ श्रेणिके प्रश्न पूबियो रे, एहनी सी गति थाय ॥ जगवंत कहे हिवणां मरे तो, सातमी नरके जाय ॥ प्र० ॥ ५ ॥ खिए इक अंते पूछियो रे सर्वार्थसिद्धि विमांन ॥ वाजी देवनी 55जी मुनि पांग्या केवलज्ञान || प्र० ॥ ६ ॥ प्रष्णचंद मुनि मुगते गया रे, श्रीमहावीरना शिष्य || रिहरख कहे धन्य ते, जिए दीठा रे परत ॥ प्र० ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ अथ पंडित श्रीजेतसी मुनिकृत दशवैकालिक सझाय लिख्यते ॥ ॥ मुनि वृपज श्रीमनक मुनयेनमः ॥ श्रीदशवैकालिकसूत्रकृत् चतुर्दशपूर्वघर श्री शय्यँजवसूरिं वंदे ॥ ॥ तत्र प्रथमाध्ययन सझाय लिख्यते ॥ ॥ धर्म मंगल महिमानिलो । धरम समो नहीं कोय । धर्म For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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