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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६३) चंद्रग्रहण असिन्काई जणी,बारह पोहर उत्कृष्टी गिणी ॥ जघन्य प्रकारै आठ विचार, सूर्यग्रहण पोहर जघन्यै वार ॥ ७ ॥ सोल प्रहर उत्कृष्टी कही, सुगुरु मुखै नवियण सरदही।नगर प्रधान मरे जो कोश, आठ पुहर असिज्काई होय ॥ ए॥ वसतीश्रकी सातां घर माहि, नर विहमै अहोरति असिन्काई ॥ पुरुष पड्यो होय मृतकअनाथ, तां असिकाय कही सो हाथ ॥१०॥ पुत्रतणे प्रसवै दिन सात, बेटी आठ दिवस विदात ॥ सो कर मांहि कही असिकाई, नारी ऋतु दिन तीन कहाश् ॥ ११ ॥ इंको फूटै प्रसवै गाइ, जां जर रुधिर पमै तिन गइ ॥ असिज्जा सो कर मांहि, त्रिएह पोहर के ऊपर नही ॥१२॥ असाढे चौमासै दिने, पमिकमणा गयाथी गिणे ॥ बार पोहर असिकाई कही, काती चौमासै इण परि सही ॥ १३ ॥ इण पर असिकाई बै बहू, गीतारथ गुरु जाणे सहू ॥ सांजलि ए में कही संखेवि, हरखै पय प्रनू कीजै हेवि ॥ १५ ॥ अंतवर्ग अंतदर जे, च्यार मात्रदीजे तेह ॥ सत्तम वर्ग बीअं अदरै, तब कबि नाम कहियो इण परै ॥ १५ ॥ इति असिकाइ सिकाय संपूर्णम् ॥ ॥ अथ बावीस अभक्ष सज्झाय लिख्यते ॥ जिनशासन रे सूधी सरदहिणा धरो, श्रीगुरुमुख रे नव तत्व ए निरता करो ॥ मिथ्यामत रे कुमति कदाग्रह परिहरी, सहि पालो रे ते नर समकित मन खरो ॥ १॥ तूटक ॥ मन खरौ समकित शुद्ध पालौ, टालो दोष दया परो ॥ धुरि पंच अणुव्रत तीन गुणवत, च्यार सिदाव्रत धरौ ॥ श्म देशविरती For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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