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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुवारी लाल, अनिग्रह लीधो एहवो हूँ॥लेस्युं श्रुद्ध आहार रे॥ हुँ० ॥१॥ ढंग ॥ नितप्रति गोचरी टुं० ॥ न मिले श्रुध आहार रे ॥ ढुवा मूल न लै अणसूऊतो ढुं० ॥ पंजर कीधो गात रे हुं० ॥२॥ ढं० ॥ हरि पूर्व श्रीनेमीने हूं, मुनिवर सहसअढार रे ॥ ९ वा ॥ उत्कृष्टो कुण एहमें हुं० ॥ मुऊनें कहो विचार रे ॥ ९वा ॥ ३ ॥ ढं० ॥ ढंढण अधिको दाखियो ढुं० ॥ श्रीमुख नेमजिएंद रे ढुंवा० ॥ कृष्ण ऊमाह्यो वांदवा हुं० ॥ धन जादव कुलचंद रे हुं वा० ॥ ४ ॥ ढं० ॥ गलियारे मुनिवर मिट्या ढुंग, बांद्या कृष्ण नरेस रे ढुवा० ॥ किणही मिथ्यात्वी देखने ढुंग, आण्यो लाव बिसेसरे ढुं०॥५॥ ढं० ॥ मुझ घर आवो साधुजी हुँ०, ट्यो मोदक बै श्रुधरे हुँ । मुनिवर विहरीने पांगुस्सा हुँ०, आया प्रनुजीने पास रे ९० ॥ ६॥ ढं० ॥ मुफ लबधै मोदक मिट्या हुँ०, कहोने तुम्हे किरपाल रे हुं० ॥ लब्धि नही वच ताहरी हूं, श्रीपति खबधि निहाल रे ९० ॥७॥ ढं॥ए लेवो जुगतो नही हुं०, च्यात्या परउन काज रे हुं० ॥इंट निवा हे जायने हुं० चूरे करम समाज रे ९० ॥८॥ ढं० ॥ आणी चढती जावना हुं०, पांम्यो केवल नाण रे ९० ॥ ढंढण ऋषि मुगते गया हुं, कहे जिनहर्ष सुजाण रे हुं० ॥ ए॥ ढं० ॥ इति ढंढण शषि सज्काय संपूर्ण ॥ ॥ अथ धन्नाऋषी सज्झाय ॥ श्रीजिनवाणी रे धन्ना, अमिय समाणी मोरा नंदन, मनमो तो मानी रे नंदन ताहरै ॥ १॥ तूं अतहि वैरागी रे धन्ना, धरमनो रागी मोरा नंदन माहरो तो मममो रे किम परचावसुं For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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