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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४५) ॥४॥ बोधिलाल वलि तंत ते अंतकृत्य कही जी, धर्मकथाना दोय ने सूय खंध हो ॥म्हागापहिलाना उगणीस अध्ययन ते आज चै जी, बीजाना दस वर्ग महा अनुबंध हो । म्हा ॥ ५॥ ऊंठकोमि तिहां सकल कथानक जाषिया जी, नाष्या वलि जगए।स उद्देस हो ॥ म्हा० ॥ संख्याता हजार जला पद एहना जी, एह अकी जायै कुमति कलेश हो । म्हा ॥ ६॥ विनय करे जे गुरुनो बहु परै जी, तेहने श्रुत सुणतां बहु फल होय हो ॥ म्हा० ॥ ते रसिया मन बसिया विनयचंधने जी, सो मांहे मिलै जोया एक कै दोय हो ॥ म्हाण ॥ ७॥ इति ज्ञाताधर्मकथांग स० ॥ ॥ अथ ७ ॥ उपासकदशा सूत्र सज्झाय लिख्यते ॥ ॥ ढाल विबियानी ॥ हिवै सातमो अंग ते सांजलो, उपा सगदशा नामे चंग रे ॥ श्रमणोपासकनी वर्णना, जसु चंदपनत्ती उपांग रे॥१॥ मन लागो मोरो सूत्रथी, एतो लव वैराग तरंग रे ॥ रस राता ज्ञाता गुण लहै, परमारथ सुविहित संग रे॥ म ॥२॥ण अंगे सुयखंध एक जै, अध्ययन उद्देस विचार रे ॥ दस ५ संख्यायें दाखव्या, पद पिण संख्यात हजार रे ॥म० ॥ ३॥ आनंदादिक श्रावकतणो, सुणतां अधिकार रसाल रे ॥ रसलागे जागे मोहनी, श्रोताजनने ततकाल रे ॥ म० ॥४॥श्रोता बागल तो वांचतां, गीतारथ पामे रीकं रे ॥ जे अर्धदग्ध समजै नही, तेहसुं तो करवी धीज रे ॥ म० ॥५॥ दस श्रावक तो यहां जाषिया, पिण सूत्र जएयो नही कोय रे ॥ ते माटे शुद्ध श्रावक जणी, एक अरथ वृ० १० For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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