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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२) वेदना सहेतारे । एम काल अनंतो त्याहा। सहे मुख मरतारे ॥५॥ हवे तो सही न जाय । नारकी मुःखमारे । कोइ न पूचे सार । नारकी सुखमारे ॥ ६ ॥ नहि शरणुं तीहां को। असरण मरतारे । परमा धामी जेह, बहु मुःख देतारे ॥७॥ सांजली परहरे देह । श्राये प्राणीरे । कहे मुक्ति महाराज कहे प्रनु नाणीरे ॥७॥ ॥दोहा॥ पाप करम कीधा घणा । बहु जीव संहार।पीमा न जाणे परतण। । जीवमो वमो गमार ॥१॥ अलीक वचन मुख जापीआ । पारका चोर्या माल । सेवी परनारी निःशंक पणे । आरंज कीधा अपार ॥२॥ बहु परिग्रह मेलव्यो । निशी जोजन अंधार । बहु जीव विणास्या तिहां कणे । अनद अथाणुं नहि पार ॥३॥ कोलमा गसने मेलवी । जम्यो आहार निःशंक । लाल जोगे बहु जीवमा । उपजे तेन दीसंत ॥४॥ अलगी थाए नार तस । आजम जेट निवार । गणांगे प्रगट पाठ ए । जाणो तम निरधार ॥ ५॥ ॥ढाल च्छट्टी विसारिमी ए देशी॥ मात पिता गुरु उलव्या गुण रागीरे । किधा क्रोध अपार । सुणो तुमे रागीरे । मान माया लोनयी ॥ गुण ॥ बुधि नहि रही कां ॥ सुण ॥ १॥ नरकतणां जे बारणां ॥ गुण ॥ पापे उघाड्या तेह ॥ सुणा ॥श्म परमाधामीनी वेदना ॥ गु०॥ शुली कटी वन ॥ सु॥२॥ उदीरी उदीरी देह ने ॥ गु०॥ पठे पगमे तेह ॥ सु०॥ तरस वसे करी तेह ने ॥ गुण ॥ उकाली कथीर ते पाय॥सु०॥३॥ मुखमां नाखे तेहने ॥गु०॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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