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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११८ ) नयविमल कहे सजाय ॥ २३ ॥ इति सचित्त चित्त वस्तु स्वरूप सजाय ॥ I ॥ अथ काउसरगना १९ दोसनी सझाय ॥ सकल देव समरी अरिहंत प्रणमी सदगुरु गुणे महंत । उगणीस दोष का सग्गतणा । बोलुं श्रुत अनुसारे सुया ॥ १ ॥ घोटक दोष को वलि एह । वांको पग राखे वलि जेह । लत्ता दोष बीजो हवे सुखो कील हलावे जे ति घणो ॥ २ ॥ उठींगण लेई जे रहे । थंज दोष ते तीजो कहै । माल दोष चोथो को एह । मस्तक टकावी रहे जेह ॥ ३ ॥ पग अंगूठा मेली रहे । उद्धि दोष ते पंचम कहे । बेकं पग जेला करे जेह । नउल दोष बो को एह ॥ ४ ॥ गुह्य गमि राखे निज हाथ | शबरी दोष कह्यो जगनाथ । मुख चलना करे तिघणी । खलित दोष अहम ते सुखी ॥ ५ ॥ घूघट ताणीनें जे रहे । बहु दोष ते नवमो लहे लक थम तूं पहिरे पहिरं । दशमे दोष लंबोत्तर जणुं ॥ ६ ॥ हृदय स्थल बादित रहे ते या दोष इग्यारमो लहे । वस्त्रांसुं ढांक्यो सवि देह । संयति दोष बारसमो एह ॥ ७ ॥ नांमण चालो करे • ति घणुं । मुह दोस तेरसमो जणुं । अंगुली हलावे संख्याकाज । चवदमो दोष कह्यो जिन राज ॥ ८ ॥ नेत्र तथा चाला जे करे । वायस दोष पनरमो धरे । पहिया वस्त्र संकोमी रहे । कपित्थ दोष सोलसमो लहे ॥ ए ॥ मस्तक धूणावे अति घणुं । ते सिरकंप सतरमो जणुं । महिरानी परि जे वरुवमे । वारुणी दोष वरमो चके ॥ १० ॥ मूक दोष कह्यो उगणीसमो । For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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