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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०१) ला कीध । रूप रंग गुण जू जू श्रा जी । तस फल फूल प्रसिद्ध ॥ १७ ॥ वि०॥ विसहर मस्तके नित वसे जी। मणिहरे विस तत काल । परबत थिर चल वायरो जी । उरध अगननी काल ॥ १७ ॥ वि० ॥ मन तुंब जलमां तरे जी। बूमे काग पाहाण । पंख जाति गयणे फिरे जी। इणपरे सहिज विनाण ॥ १५ ॥ वि० ॥ वाय सूरथी उपसमें जी। हरमे करे विरेच । सीजे नहि कण कोरमु जी । सकल स्वजाव अनेक ॥ २० ॥ वि० ॥ देश विशेषे काठनो जी । नुयमां पाये पाखा ण । संख अस्थिनो नीपजे जी। देव स्वनाव प्रमाण ॥ २१॥ वि० ॥ रवि तातो शशि सीयलो जी। जव्यादिक बहु जाव । बए ऽव्य आप आपणा जी । न तजे कोश् स्वजाव॥२॥वि०॥ ॥ ढाल ३ कपूर हुवे अति ऊजलो रे ए चाल ॥ ॥ काल किसुं करे बापमो रे । वस्तु स्वजाव अकज । जो न होइ नवतव्यताजी ।.तो किमसीके का रे ॥२३॥ प्राणी मकरो मन जंजाल । ए तो जावी जाव निहाल रे ॥ प्रा० ।। जलधितरे जंगल फिरे जी । कोमि यतन करे कोय । अण जावी होवे नहीं जी। जावी होय ते होय रे ॥ २४॥ प्रा॥ आंबे मोर वसंतमा जी।माले कोइलाख । कस्या केई खांखटीजी। केई वा केई साख रे ॥ २५॥ प्रा० ॥ वांउल जिम नव तव्यता जी। जिण जिण दिशे उजाय । परवस मन माणस तणो जी। तृण जिम पूरे धाय रे ॥ २६ ॥ प्रा० ॥ नियत वसे विण चिंतव्यूं जी । श्रावी मिले व्रतकाल । वरसां सोनुं चिंतव्यो जी। नियम करे विसराल रे ॥२७॥ प्रा० ॥ श्राउमो For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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