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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (ए? कप्पिया कप्पवर्मिसिया जी। पुपियाँ" नाम वखाण ।। जग ॥ ११॥ पुष्फ चुलिया जाणीये जी । वन्हि दशा इण नाम ॥ नामश्री अर्थ पिगण ज्यो जी । सांजलता सुख धाम ॥ जग ॥१२॥ ॥ ढाल २ ख्याली लाल अणवट रंग लागो ए देशी॥ ॥ दतणा प्रायश्चित्तना जी। बेद गए ए जाण ॥ वृहत्कटप विवहारमें जी । नाख्यो नगवंत ज्ञान ॥ सुझानी लाल इणसुं नितराचो ॥राचो राचो रे जविक दिखधार । इणसु नित राचो । सुझा० ॥ १३॥ महानिशीथे नाखियो जी। जिन पूजा बिहुँ जेद ॥ श्रावक व्य नावसुं जी। मुनिवर नाव उमेद ॥ सु० ॥ १४ ॥ जीतकटप वलि निसीय ने जी। ओर दशाश्रुतस्कंध ॥ दश पयन्ना जाणिये जी । चौसरण संथार प्रबंध ॥१५॥ सु०॥तंकुल वयाली चंदा विजाया जी। गणिविजा अन्निधान ॥ देव विजया वीर श्रुवो जी । गलाचार निधान ॥ सु० ॥ १६ ॥ ज्योतिषकरंग महापच्चरकाण जी । च्यार सूत्र ने मूल ॥ आवश्यक दशवकालिक जी। उत्तराध्ययन अमूल ॥ सु॥ १७ ॥ च्यारे अनुयोगे करी जी। रचना सूत्रे जाण ॥ तेह न्याय निदेपथी जी। अनुयोग बार प्रधान ॥ सु०॥१॥ प्रव्यानुयोग उ ए व्यनी जी। चर्चा विधि विस्तार ॥ चरण करण अनुयोगमें जी। मुनि श्रावक आचार ॥ सु० ॥ १५ ॥ गणितानुयोग गणना करी जी। पृथ्वी नग विमाण ॥ वर्ग मूल घन मूल थी जी। जाणो चतुर सुजाण ॥ सु० ॥ २० ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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