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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७) पद पंकज प्राणमे वेकर जोमि । बेकर जोमी मचर गेमी समव सरण विरतंत । माणकहेम रूपमय त्रिगमो उत्र त्रय कलकंत। सिंहासन वेग तिहां स्वामी चोविह धर्म प्रकासे । बारे परखदा वेगरी भागलि सुणे मन जटहासे ॥ १० ॥ तपनें अधिकारे पखवासो तप सार । पमिवाथी कीजे पनरह तिथ ऊदार । पनरह तिथि कीजे गुरु मुख लीजे । जिस दिन हुवे उपवास । श्रीमुनिसुव्रत नाम जपी जे वांदी देव जबास । तप ऊजमणे रजत पालणो सोवन पूतली चंग । मोदक श्राल देहरे मूंकी जिनवर स्नात्र सुरंग ॥ ११ ॥ तप करिये निरंतरअदुरव दरशनी जेम । मन वंचित केरा सुख पानी जे तेम । सुख पामीजे कारजसीजे तप करतां सुखकार पुत्र मित्र परिवार परं अति ववन जरतार । जस कीरत सो नाग वमाई महियल महिमा जांण । परनव मुगति फल लहीये ए तपनें प्रमाण ॥ १२॥ श्रिर थापी चतुर्विध संघतणो अधिकार । जरुवच प्रमुख नगरादिक करिय विहार । विहार करी प्रतिबोधे खंदक पंचसयां परिवार । कार्तिक सेठ जितशत्रु तुरंगम सुब्रतनामकुमार । तीश सहस वरस आऊखो पाले जगदया सार । श्री सम्मेत सिखर परमेसर पोहता मुगति मकार ॥ १३ ॥ इम पंच कल्याणक थुणिया त्रिनुवन ताय । मुनि सुब्रत स्वामी वीशमो जिनवर राय । वीशमो जिनवर राय जग गुरु जय जंजण जगवंत । निराकार निरंजन निरुपम अजरामर अरिहंत । श्री जिनचंद विनय शिरोमणि सकलचंद गणि सीस । वाचक समयसुंदर इम पजणे पूरो मनह For Private And Personal Use Only
SR No.020135
Book TitleBruhat Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrachin Pustakoddhar Fund
PublisherPrachin Pustakoddhar Fund
Publication Year1920
Total Pages345
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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