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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ६५] पाठजानलेना. देखो-जिसरात्रिको तीर्थकरभगवान माताकेगर्भमेंआक र उत्पन्नहोवे,उसरात्रिको उन्होंकीमाता गर्भकाले अर्थात् च्यवन क. ल्याणक समय सर्व तीर्थकरोकी माताये यह१४महास्वप्न देखती हैं। ऐसेही श्री महावीरस्वामिभी त्रिशलामाताके गर्भमें आये,तब त्रिशलामातानेभी १४महास्वप्न देखें हैं । इस ऊपरके पाठपर अच्छी तरहसे तत्वदृष्टिसे विचारकिया जावे. तो-अनादिकालकी मर्यादा मुजब सर्व तीर्थकर महाराजोके च्यवन कल्याणककी तरहही आश्विन वदी १३ की रात्रिको त्रिशलामाताके गर्भमै भगवान् आये; उनको खास सूत्र कारने और सुबोधिका, दीपिका, किरणावली वगैरह सर्व टीकाकारोंनेभी च्यवन कल्याणक मान्य कियाहै। और तीर्थकर महाराजाके च्यवन कल्याणकमें इंद्रमहाराजाका आसन चलायमानहोनेसे विधिपूर्वक नमस्काररूप'नमुत्थुणं' करना । तनिजगतमें उद्योत होना, तथा सर्व संसारी प्राणी मात्रको थोडीदेर सुखकी प्राप्ति होना, वगैरह कार्यहोतेहैं। यह अनादि मयार्दा आगमानुसार प्रसिद्धहीहै। यही सर्व काये आसोज वदी १३को भगवान त्रिशलामाताके गर्भमे आये तब उसीरोज होनेका ऊपरके कल्पसूत्रके मूलपाठसे तथा उन्हींकी सर्व टीकायें वगैरह बहुत शास्त्रोके प्रमाणोसभी प्रत्यक्ष सिद्धहाताहै,क्योकि देखो- आषाढ शुद्ध ६ को भगवान देवानंदामाताके गर्भमे आये तब उसी समय तो सिर्फ देवानंदामाताने १४ महा स्वप्न देखे सो अपने पति ऋषभदत ब्राह्मणको कहे, उनने स्वप्नोंके अनुसार उत्तम लक्षण वाला गुणवान् पुत्र होनेका कहा, सो बात अंगीकार किया और उसके बाद दोनो दंपति संसारिक सुखभोगते हुए काल व्यतीत करने लगे. इसप्रकार कल्पसूत्रादि सर्व शास्त्रोंमें लिखाहै, मगर भगवान् देवानंदा माताके गर्भ में आषाढशुदीदको आये,तब उसीरोज १४ महास्वप्न देखने के सिवाय इन्द्रका आसन चलायमान होनेका व नमुत्थुणं वगैरह कोईभी च्यवन कल्याणकके कार्य होनेका उल्लेख कल्पसूत्र व भगवानके चरित्र संबंधी किसीभी शास्त्र में देखने में नहीं आता. और त्रिशिलामाताके गर्भ में आसोज वदी १३ को भगवान आये,उसीरोज तो 'महापुरुष चरित्र' व 'त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित्र' तथा कल्पसूत्र और उन्हींकी सर्व टीकाये वगैरह बहुत शास्त्रोके पाठोसे प्रत्यक्षमेही 'नमुत्थुणं' वगैरह च्यवन कल्याणकके सर्व कार्य होनेका देखनेमेंआताहै. इसलिये कल्पसूत्र में जो नमुत्थुणं' होनेका पाठ है, सो. आषाढ शुदी ६ के दिन संबंधी नहीं है, किंतु For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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