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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [४ ] पिशाही कार्तिक तक 90 दिन स्वभावसेही रहते है तैसे ही २० दिने पर्यषणा करने से भी पिछाडी कार्तिक तक १०० दिनो स्वयं समझना चाहिये तथापि चंद्र संघस्सरमें भाद्रपदकी तरह अभिवर्द्धित संवत्सर में श्रावणमें पर्यषणा करनेका तथा पर्युषणाके पिछाडी 90 दिनकी तरह १०० दिन रहने का कहां कहा है, ऐसी प्रत्यक्ष अज्ञानताको सूचक कुयुक्ति करके बाल जीवोंको भ्रमानेसे कर्म बंधके सिवाय और कुछभी लाभ नहीं होने वालाहै । क्योंकि जिन जिन शास्त्रों में चंद्रसंवत्सर में५० दिने भाद्रपद में पर्यषणाकरके पिछाडी ७० दिन कार्तिक तकका लिखाहै और अभिवतिमें० दिने पर्यषणा करनेका भी लिखदियाहै उसी शामन पाटोंके भावार्थ से अभिर्द्धितमें २० दिने भाषण में पर्यषणा करनेका और पर्यषणा के पिछाड़ी १०० दिन रहनेका स्वयं सिद्ध है सोतो अल्प मतिवालेभी स्मझमकते हैं । ____ और फिरभी २० दिनकी ज्ञात तथ निश्चय और प्रसिद्ध पर्यषणामें वार्षिक कृत्यों का निषेध करने के लिये आषाढ पूर्णिमाको अज्ञात तथा अनिश्चय और अप्रसिद्ध पर्यषणामें वार्षिककृत्य करनेका दिखाते है सोभी अज्ञानताकासूचक है क्यों कि वर्षकी परतीहुये बिना तथा अज्ञात पर्युषणामें वार्षिक कृत्य कदापि नहीं होसकते हैं किन्तु वर्ष की पूर्तिहोनेसे ज्ञात पर्युषणामें वार्षिक कृत्य होते हैं और अधिक मास होनेसे श्रावणमें १२ मासिक वर्ष पूरा होजाता है इसीलिये श्रावण में ज्ञातपर्युषणा करके वार्षिक कृत्य सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादिक कार्य करने में आते हैं। ___ और मासद्धि होतेभी भाद्रपद में पर्युषणा स्थापन करने के लिये श्रीजीवाभिगमजी सत्रका एकपदमात्र लिखदिखाया ५८ For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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