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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ४३६ ] सम्बन्धी पूर्वापरविरोधि (विषमवादी) तथा उत्सूत्र भाषणोंकी कुयुक्तियोंवाले और सम्यक्त्वसे भ्रष्ट करके मिथ्यात्वमें गेरनेवाले लेखांको दीर्घ संसारीके सिवाय और कौन मान्य करके श्रीतीर्थकर गणधरादि महाराजोंकी आशातनाकारक उलटा बर्ताव करेगा सो भी तत्वज्ञ पुरुष न्याय दृष्टि वाले सज्ज न स्वयं विचार लेवेंगे___ और अधिक मासके निषेधक श्रीधर्मसागरजी श्रीजय विजयजी श्रीविनयविजयजी और पं० श्रीहर्षभूषणजी वगैरहोंने जो जो गच्छकदाग्रही दृष्टिरागी मुग्ध जीवोंको मिथ्यात्वके भ्रममें गेरने के लिये उत्सूत्र भाषणोका और कुयुक्तियोंका संग्रह करके अपना संसार वृद्धिका कारण करते हुए अपने ऐसे कल्पित लेखेको सत्य मामनेवाले अपने पक्षग्राहियोंका भी संसार वृद्धिका कारण कर गये हैं सो इन सब उत्सूत्र भाषणरूप कल्पित कुयुक्तियोंके लेखांका निर्णय तो इस ग्रन्थ में अनुक्रम साता महाशयोंके लेखांकी समीक्षामें होगया है सो इस ग्रन्थको आदिसे अन्त तक पक्षपात रहित होकर न्याय दृष्टि से पढ़नेसे सब बातोंका अच्छी तरहसे निर्णय मालम होजावेगा । तथापि जो पं० श्रीहर्षभूषणजीने पर्युषणस्थिति नामक लेख में जो जो उत्सूत्र भाषणांका और कुयुक्तियोंका संग्रह करके मिथ्य त्वका कारण किया है उसीका दिग्दर्शनमात्र थोडासा नमूना इस जगह पाठकगणको दिखाता हूं यथा श्रीसोमंधरमरहंतं नत्वापर्युषणास्थितिं ब्रवेवर्तितभा. द्रस्य व्यक्तं युक्त्यागमक्र नैः ॥ नन्वशीत्यादिनः पर्युषणापवसिद्धान्ते व प्रेकमस्तीत्येवं वेतहि पंव मासात्मक वर्ग For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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