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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ४०६ ] हेतु भूत है क्योंकि श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रका पाठ तो श्रीगणः धर महाराजका कहा हुआ है और चार मासके सम्बन्ध वाला है इसलिये उसीकी तो सदाही अच्छी गति है और धार मासके वर्षाकालमें उसी मुजब वर्तने में आता है परन्तु सातवें महाशयजी सूत्रकार महाराजके विरुद्धार्थ में पांच मासके वर्षाकाल में भी उसी पाठको स्थापन करने के लिये सत्रके पाठ पर ही आक्षेप करते हैं और बाल जीवोंको मिथ्यात्वके भ्रममें गेरते हैं सो क्या गति प्राप्त करेंगे सो तो श्रीज्ञानीजी महाराज जाने___और “ आश्विन मासको लेखामें न गिनकर सत्तर दिन कायम रक्खोगे" यह भी सातवें महाशयजीका लिखना मिथ्या है क्योंकि हम तो आश्विन मासको लेखा में गिन करके १०० दिन कायम रखते हैं इस लिये मिथ्या भाषण करनेते महानतके भङ्गका सातवें महाशयजीको भय लगता हो तो मिथ्या दुष्कत देना चाहिये-- और “श्रावण अथवा भाद्रमासको लेखामें न गिनकर पचास दिन कायम रख कर भगवान् की आज्ञाके अनुसार भाद्र सुदी चौथके रोज सम्वत्सरिक प्रतिक्रमण क्यों नहीं करते" सातवें महाशयजीका इस लेख पर मेरेको इतनाही कहना है कि मास इद्धिके अभावले आषाढ चौमासीसे पचास दिने भाद्र शुदी चौथको पर्युषणामें सांवत्सरिक प्रतिक्रमण वगैरह करनेकी तो श्रीजिनेश्वर भगवान्की आज्ञा है परन्तु पचासवें दिनकी रात्रिकोभी उल्लंघन करना नही कल्पता इसलिये दो श्रावण होनेसे श्री कल्पसत्रके तथा उन्होंकी व्याख्यायों के अनुसार ५० दिनकी गिनतीसे दूसरे श्रावण में For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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