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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३९१ ] सन्मार्गमें प्रवर्तने सम्बन्धी दो कन्याका एक दृष्टांत दिखाया है जिसकी चर्णिकारने, वृहद् वृत्तिकारने और लघुपत्तिकारने खुलासा पूर्वक, व्याख्या करी है और द्रव्य निवृत्ति पर दृष्टांत दिखाके, फिर भाव निवृत्ति पर उपनय करके दिखाया है, उसीके सब पाठोंको विस्तार के कारणसे हम जगह नहीं लिखता हूँ परन्तु जिसके देखनेकी इच्छा होवे सो चर्णिके २६४ पृष्ठमें, तथा वृहद् कृत्तिके २३३ पृष्ठ में देखलेना। और पाठकवर्गको लघुवृत्तिका पाठ इस जगह दिखाता हूँ श्रीतिलकाचार्यजी कृत श्री आवश्यक लघु वृत्तिके १९६ पृष्ठ यथा एकत्र नगरे शाला, पतिः शालासु तस्य च ॥ धूर्तावयंति तेष्वेको, धर्तो मधुरगी सदा ॥१॥ कुविंदस्य सुता तस्य,तेन साईमयुज्यत॥ तेनोचे साथ नश्यामो, याववत्ति न कश्चनः ॥२॥ तयोचेमे वयस्यास्ति, राजपुत्री तया समं ॥ संकेतो. स्ति यथा द्वाभ्यां, पतिरेक करिष्यते ॥३॥ तामप्यानयतेनोचे, साथ तामप्यचालयत् ।। तदा प्रत्यषे महति, गीतं केनाप्यदः स्फुटं ॥ ४ ॥ “जइ फुल्ला कमियारया, चअगअहि मासयंमिघटुंमि ॥ तुह न खमं फुल्लेउ, जइ पच्चंता करिंति इमराइं" ॥ “नखमं नयुक्तं प्रत्यंता नीचकाः डमराणि विप्लवरूपाणि शेषं स्पष्ठ ॥ अत्वैव राजकन्या सा दध्यौ चतं महातरुम् ॥ उपालब्धो वसंतेन, कर्णिकारोउधमस्तरुः ॥॥ पुष्पितो यदि किं युक्तं, तवोत्तमतरोस्त्वया ॥ अधिक मास घोषणा, किं न तेत्यस्यगीः शुभा ॥६॥ चेत्कुविंदी करोत्येवं, कर्तव्यं कि मयापि तन् ॥ निहत्तासामिषाद्रत्न, करंडोमेस्ति विस्मृतः॥ ॥ राजसूः कोपि तत्राहि, गोत्रजैस्त्रासितो For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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