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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३८५ ] और अक्षयतृतीया दीपालिकादि सम्बन्धी आगे लिखनेमें आवेगा। और ( दिगम्बर लोग भी अधिक मासको तुच्छ मानकर भाद्रपदशुक्ल पञ्चमीसै पूर्णिमा तक दशलानणिकपर्व मानते हैं ) सातवें महाशयजीका इस लेखपर मेरेको इतनाही कहना है कि-दिगम्बर लोग तो केवलीको आहार, स्त्रीको मोक्ष, साधुको वस्त्र, श्रीजिनमूर्तिको आभूषण, नवाङ्गी पूजा वगैरह बातोंको निषेध करते हैं और श्वेताम्बर मान्य करते हैं इसलिये दिगम्बर लोगोंकी अधिक मास सम्बन्धी कल्पनाको श्वेताम्बर लोगोंको मान्य करने योग्य नहीं है क्योंकि श्वेताम्बरमें पञ्चाङ्गीके अनेक प्रमाण अधिक मासको गिनतीमें करने सम्बन्धी मौजूद हैं इसलिये दिगम्बर लोगोंकी बातको लिखके सातवें महाशयजीने अधिक मासको गिनतीमें लेनेका निषेध करनेको उद्यम करके बालजीवोंको कदाग्रहमें गेरे हैं सो उत्सूत्र भाषणरूप है और सातवें महाशयजी दिगम्बर लोगोंका अनुकरण करते होंगे तब तो ऊपरकी दिगम्बर लोगोंकी बातें सातवें महाशयजीका भी मान्य करनी पड़ेंगी यदि नहीं मान्य करते हो तो फिर दिगम्बर लोगोंकी बात लिखके वृथा क्यों कागद काले करके समयको खोया सो पाठकवर्ग विचार लेवेंगे और आगे फिर भी पर्युषणा विचारके पाँचवे पष्ठको ७ वी पंक्तिसे लट्ठ पृष्ठकी पाँचवीं पंक्ति तक लिखा है कि[अधिकमास संज्ञी पञ्चेन्द्रिय नहीं मानते, इसमें कोई आश्चर्य नहीं है क्योंकि एकेन्द्रिय वनस्पति श्री अधिक मासमें नहीं फलती। जो फल श्रावण मासमें उत्पन्न होने ge For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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