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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [३२) महीनेभी किये जाते हैं । और दूज-पंचमी अष्टमी चतुर्दशी वगेरहमें उपवास करनेका, ब्रह्मचर्य पालने का, गत्रिभोजन त्याग करनेका इत्यादि व्रत, नियम पञ्चख्खाण तो दोनों महानाम दो दा बार कर. नेमें आते हैं। और पर्युषणापर्व तो मास बढ़े तो भी ५० दिनकी जग. ह ५१वे दिनभी कभी नहीं हो सकते हैं. इसलिये दिन प्रतिबद्ध पर्युष. णापर्वके साथ,मास प्रतिबद्ध होली, दीवाली दशहरा वगैरहका वि. षय लाना सो विषयांतर होनेसे सर्वथा अनुचित है। ' और महीनाबढन के अभावमें ओलियोंका पर्व छठे महीने करनेका शास्त्रों में कहाहै, मगर जब कभी महीना बढ जावे तबतो प्रत्यक्ष प्रमाणसे और शास्त्रीय हिसाबसेभी सातवें (७) महीने ओलीयों कापर्व होताहै . तो भी व्यवहारसे छठे महीन आंबील की ओलिय करनेका कहाजाता है. देखो जैसे- श्रीआदीश्वर भगवान् ने चैत्र वदी८ [गुजरातदेशकी अपेक्षासे फागण वदी ८ ] को दीक्षा अंगीकारकी थी और दीक्षाके दिनसे लेकर तपस्याका पारणा दूसरे वर्ष में वैशा. खशुदी३ को हुआथा, तोभी व्यवहारसे सर्व शास्त्रों में वर्षी तपका पारणा लिखा है. और ऐसेही वर्षांतपका पारणा सर्व कोई जैनामात्र अभीभी कहते हैं. मगर दिनोंकी गिनतीसे तो १३ महीनोंके ऊपर १० दिन होनेसे ४००दिन पारणाके रोज होतेहैं. जिसमेभी कदाचित उस वर्ष में बीचमें अधिक महीना आजावे तो १४ महीने के उपर १० दिन होनेसे ४३०दिनेपारणा होताहै. तोभी व्यवहारसे वर्षी तप करने का कहाजाताहै, और यह बात तो अभी वर्तमानमेंभी वर्षी तप कर. नेवालोंके सर्वके अनुभवमें प्रत्यक्षही आता है, इसलिये ४३० दिने पारणा करते हैं, तोभी व्यवहारसे वर्षांतपही कहते हैं। और व्यव. हारसे वर्षके ३६० दिन होते हैं, मगर निश्चयमें तो ४३० दिने पार. णा करनेका बनता है. तो भी किसी तरहका विसंवाद या दोष नहीं आ सकता. इसी तरहसेही व्यवहारसे ओली ६ महीने, चौमासा ४ महीने व वार्षिक पर्व १२ महीने करनेका कहते हैं. मगर जब बीच में अधिक महीना आजावे तब तो निश्चयमें, ओली७महीने, चौमासा ५ महीने,व वार्षिकपर्व१३महीने होताहे.तोभी तत्वदृष्टिस कोई तरहका विसंवाद या दोष कभी नहीं सकताहै.मगर पर्युषणापर्व तो अधिक महीना हो तबभी आषाढ चौमालाले वीक के ५० वें दिनकी ज. गह५१वें दिनभी कभी नहीं होसकते. इसलिये मास प्रतिबद्ध होली, दीवाली,ओली वगैरहकारष्टांत दिन प्रतिबद्ध पर्युषणाम बतलाना सो For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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