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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३६२ ] और आषाढ़ चौमासीसें पचास दिने अवश्यही पर्युषणा पर्व करनेका सर्वत्र शास्त्रोंमें कहा है जिसका भी विशेष विस्तार इसीही ग्रन्थकी आदिसे लेकर ऊपर तकमें अनेक जगह छप गया है इसलिये वर्तमान कालमें ५) दिनके हिसाबसें दूसरे श्रावणमें पर्युषणापर्व करना सो शास्त्रानुमार और युक्तिपूर्वक सत्य होनेसे उसी मुजब वर्तनेवालोंको जो सातवें महाशयजीने दूषण लगाया हैं सो निःकेवल संसार वृद्धि के हेतुभूत उत्सूत्र भाषण किया हैं इस बातको निष्पक्षपाती पाठकवर्ग स्वयं विचार लेवेगे। और देखिये बड़ेही आश्चर्यको बात है कि सातवें महाशयजी श्रीधर्मविजयजी इतने विद्वान् कहलाते हैं और हरवर्षे गांव गांवमें श्रीकल्पमूत्रका मूल पाठको तथा उन्हींकी वृत्तिको व्याख्यानमें वाँचते हैं उसी में ५० दिने पर्युषणा करनेका लिखा है उसी मुजबही दूसरे श्रावणमें ५ दिने पर्युषणा करते हैं जिन्होंको अपनी मति कल्पनासे आज्ञाभङ्गका दूषण लगाना सो विवेकशून्य कदाग्रही अभिनिवेशिक मिथ्यात्वी और अपनी विद्वत्ताकी हासी करानेवालेके सिवाय दूसरा कौन होगा सो भी पाठकवर्ग विचार लेवेगे ;___ और आगे फिर भी सातवें महाशयजीने पर्युषणा विचारके चौथे पृष्ठकी तीसरी पंक्तिसें चौदह वीं पंक्ति तक लिखा है कि ( अधिक मासके मानने वालोंको चौमासी क्षमापनाके समय 'पंचमहं मासाणं दसराहं पक्खाणं पञ्चासुत्तरसयराइंदिआणमित्यादि' और सांवत्सरिक क्षमापनाके समय 'तेरसरह मासाणं छब्बीसरहं पक्खाणं' पाठकी कल्पना करनी पड़ेगी। यदि ऐसा करोगे तो कल्पित आचार For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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