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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir । २० न्य करके उस मुजब प्रमाण करना आत्मार्थी सम्यक्त्व धारियोंको योग्य है. इसबातको विशेष तत्त्वज्ञ जन स्वंय विचार सकतेहैं । और इसविषयका विशेष खुलासाभी इसी ग्रंथके पृष्ठ ३६२ से ३८२ तक छपगया है, उसके देखनेसे सब निर्णय हो जावेगा। ३१- पांच महीनोंके चौमासी क्षामणों संबंधी खुलासा. पहिले जैनटिप्पणामें जब पौषमहीना बढताथा तबभी फाल्गु. नचौमासापांचमहीनोंका होताथा, तथा जब आषाढमहीना बढताथा तबभी आषाढ चौमासा पांच महीनोंका होताथा, तैसेही अभी वर्तमानमें लौकिक टिप्पणामें श्रावणादि बढतेहैं, तबभी कार्तिक चौमा. सा पांच महीनोंका होता है. यद्यपि सामान्य व्यवहारसे चौमासा ४ महीनोंका कहा जाताहै, मगर जब अधिकमहीना होवे तव विशे. ष व्यवहारसे निश्चयमें पांच महीनोंके १० पाक्षिक प्रतिक्रमण सर्व गच्छवालोको प्रत्यक्षमेही करनेमें आते हैं । और जितने मास पक्षोंका प्रायश्चित [दोष ] लगा होवे, उतनेही मास पक्षोंकी आलोचना [क्षामणा] करना स्वयं सिद्धही है । और मास बढनेसे पांच महीनोके दश पक्ष होनेपरभी उसमें; ४ महीनोंके ८ पक्षोके क्षामणे कर. ने और एकमहीने के दो पक्षोंकी आलोयणा छोडदेनी यह सर्वथा अ. नुचित है। इसलिये ऊपर मुजब ३० वें नंबरके १३ माली संवच्छरो क्षामणों संबंधी लेख मुजबही यथा अवसर पांच महीनोंके दशपक्षों के चौमासेमें क्षामणेकरने शास्त्रानुसार युक्तियुक्तहोनेसे कोई भी निषे. ध कभी नहींकरसकता,इसकाभी विशेषखुलासा इसंग्रंथके पृष्ठ ३६२ से ३८२ तकके क्षामणोंसंबंधी लेखमें छपगयाहै, वहांसे जान लेना. ३२- १५ दिनोंके पाक्षिक क्षामणों संबंधी खुलासा । __जंबूद्वीपपन्नत्तिसूत्रवृत्ति,ज्योतिष्करंडपयन्नवृत्ति, लोकप्रकाशादि जैन-ज्योतिषके शास्त्रानुसार तो जिसपक्षमें तिथिका क्षयहोवे, वो पक्ष१४दिनोंकाहोताहै और जिसपक्षमें तिथिकाक्षयनहोवे,वो पक्ष १५ दिनोंका होता है। मगर लौकिक टिप्पणा तो अभी हरेक तिथि. योकी हानी और वृद्धि होतीहै,इसलिये कभी१३दिनोंकाभी पक्ष होता है, कभी १४ दिनोंकाभी पक्ष होताहै, कभी १५दिनोंकाभी पक्ष होता है और कभी १६दिनोकाभी पक्ष होताहै,मगर व्यवहारसे१५ दिनोका पक्ष कहाजाताहै. इसलिये व्यवहारसे पाक्षिकप्रतिक्रमणमें १५ दिनोंके क्षामणे करनेमें आतेहैं.मगर निश्चयमें तो प्रतिक्रमण करने के समय तक जितने रोजके कर्मबंधन हुए होंगे, उतनेही रोजके कर्मोंकी नि For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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