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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३४१ ] श्रावणमें पर्युषणा करने वालोंको मूलमन्त्रको अलग छोड़ने सम्बन्धी सातवें महाशयजीका लिखना मिथ्या है और सातवें महाशयजी अनेक बातोंमें मूलमन्त्ररूपी अनेक शास्त्रोंके मूलपाठोंको जानते हुवे भी अभिनिवेशिक मिथ्यात्वके अधिकारी बन करके अलग छोड़ते हैं सोही दिखाता हूं ;--- १ प्रथम-हर वर्षे गांम गांममें वंचाता हुवा सुप्रसिद्ध श्रीकल्पसत्रमें पर्युषणा सम्बन्धी मूलमन्त्ररूपी विस्तारमें पाठ है उसीके अनुसार इस वर्तमान कालमें श्रीजिनाज्ञाके आराधक आत्मार्थी प्राणियों को पर्युषणा करनी चाहिये तथापि सातवें महाशयजी अभिनिवेशिक मिथ्यात्वको सेवन करते हुवे ( श्रीकल्पमत्रका मूलमन्त्ररूपी पाठ इसीही ग्रन्यके पृष्ठ ४।५ में छप गया है ) उसीको जानते हुवे भी अलग छोड़ते हैं और श्रीकल्पसूत्रके पाठानुसार दूसरे प्राधगामें पर्युषणा करने वालों को झूठे ठहराकर मिथ्या दूषण लगाते हुवे निषेध करते हैं इसलिये शास्त्रानुसार वर्त्तने वालोंकी वृथा निन्दा करके श्रीजिनाज्ञारूपी सत्यधर्मकी अवहेलना । ( तिरस्कार ) करने वाले काशीनिवासी सातवें महाशयजी श्रीधर्मविजयजी है। २ दूसरा-श्रीअनन्त तीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंने अनन्त काल हुवे अधिकमासको गिनती में खुलासा पूर्वक प्रमाण किया है तथा आगे करेंगे और सूत्र, नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, वृत्ति, प्रकरणादि अनेक शास्त्रों में अधिक मासको गिनतीमें लेने सम्बन्धी विस्तार पूर्वक पाठ है सो कितने ही तो इसीही ग्रन्यके पृष्ठ २७ से ६५ तक छप गये हैं For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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