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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir अभिनिवेशिक मिथ्यात्व सेवन करनेवाले हैं सो आगे लिखने में आवेगा ; __ और पर्यषणा विचारके प्रथम पृष्ठकी १९ वीं पंक्तिसे दूसरे पृष्ठकी पंक्ति दूसरी तक लिखाहै कि ( सिद्धान्तका रहस्य ज्ञात होने पर भी एकांशको आगे करके असत्य पक्षका स्थापन और सत्य पक्षका निरादर करनेके लिये कटिबद्ध होकर प्रयत्न करते दिखाई पड़ते हैं) इस लेख पर भी मेरेको इतनाही कहना है कि सातवें महाशयजीनें अपने कृत्य मुजबही जैसा अपना वर्ताव था वैसा ही उपरके लेख में लिख दिखया है इसका खुलासा मेरा आगेका लेख पढ़नेसें पाठकवर्ग स्वयं विचार कर लेवेंगे ;.. और पर्युषणा विचारके दूसरे पृष्ठ की पंक्ति इसे ६ तक लिखा हैं कि ( तत्र वार्षिकपर्व भाद्रपदसितपञ्चम्यां कालि कसूरेरनन्तरं चतुर्थ्यामेवेति-अर्थात् भाद्रपद सुदी पञ्चमीका साम्वत्सरिक पर्व था पर युगप्रधान कालिकाचार्य के समयसे चत में वह पर्व होता है) इस लेख पर भी मेरेको इतना ही कहना है कि-सातवें महाशयजीने उपरके लेखसें वर्त्तमान कालमें दो श्रावण होते भी भाद्रपदमें पर्युषणा स्थापन करनेके लिये परिश्रम किया सो भी उत्सूत्र भाषण है क्योंकि आषाढ़ चौमासीसें पचास दिने पर्युषणा करनेकी श्रीजैनशास्त्रों में मर्यादा पूर्वक अनेक जगह व्याख्या है इसलिये दो श्रावण होनेसे ५० दिने दूसरे प्रावणमें पर्यषणा करना शास्त्रानुसार युक्ति पूर्वक है तथापि मासवृद्धि दो श्रावण होते भी भाद्रपद में पर्युषणा स्थापन करते हैं सो मिथ्या हठवादसे उत्सूत्र भाषण करते हैं क्योंकि For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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