SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 468
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३३६ ] संसार वढ़ाया इस न्यायानुसार आपके गुरुजी न्यायाम्भो. निधिजीने इतने उत्सूत्र भाषणोंसें कितना ससार वढ़ाया होगा सो तो आप लोगोंको भी न्याय दृष्टि से हृदयमें विचार करना उचित है और अब आप लोग भी उसी तरहके उत्सूत्र भाषणोंसें मिथ्या झगड़ा करते हुए श्रीजिनेश्वर भगवान्की आज्ञानुसार मोक्षमार्गको हेतुरूप सत्यबातोंका निषेध करके श्रोजिनाज्ञा विरुद्ध संसार वृद्धि की हेतुभूत मिथ्या कल्पित बातोंको स्थापन करके बाल जीवोंकी सत्यबात परसे श्रद्धाभ्रष्ट करते हो और मिथ्यात्वको बढ़ाते हो सो कितना संसार वढ़ावोगे सो तो श्रीज्ञानीजी महा. राज जाने-यदि आपको संसार वद्धिका भय होवे और श्रीजिनाज्ञाके आराधन करने की इच्छा होवे तो जमालिके शिष्योंकी तरह आपसी करों तथा न्यायाम्भोनिधिजीके समुदायवालोंको भी ऐसही करना चाहिये क्योंकि जमा. लिके उत्सूत्र परूपनाको उन्ह के शिष्योंको जबतक मालूम नही थी तबतक तो जमालिके कहने मुजबकी सत्य माना परन्तु जब अपने गुरुकी श्रीजिनाज्ञा विरुद्ध उत्सूत्र परुपनाकी मालूम होगई तब उसीको छोड़ करके श्रीवीरप्रभुजीके पास आकर सत्यग्राही होगये तैसेही न्यायाम्भो. निधिजीके शिष्यवर्गमें भी जो जो महाशय आत्मार्थी सत्य ग्राही होवेंगे सो तो दृष्टिरागका पक्ष को न रखके अपने गुरुकी उत्सूत्र भाषणकी बातोंको छोड़कर शास्त्रानुसार सत्य बातोंको ग्रहण करके अपनी आत्माका कल्याण करेंगे और भक्तजनको करावेंगे। इति छठे महाशयजोके लेखकी मंक्षिप्त ममीक्षा समाप्ता । For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy