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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३० ] रूपी मिथ्यात्वको बढ़ाने वाला झगड़ा ( अविसंवादी श्री. जैनशासनमें इस वर्तमान काल के बालजीवोंकी श्रद्धाभ्रष्ट करनेके लिये) श्रीआत्मारामजीने अपनी विद्वत्ताके अभि मानसे खूबही फैलाया है ;___ और सामायिकाधिकार प्रथम करेमिभंतेका उच्चारण करनेका निषेध करके प्रथम इरियावही स्थापन करने सम्बन्धी ऊपरोक्त जैन सिद्धान्त समाचारी नामक पुस्तकमें जैसे उत्सूत्र भाषणोंसें मिथ्यात्व फैलाया है तैमेही श्रीवीरप्रभुके छ कल्याणक निषेध करके पाँच कल्याणक स्थापन करने वगैरह कितनी बातों में भी खूबही उत्सूत्र भाषणोंसे मिथ्यात्व फैलाया है जिसका खुलासा आगे लिखुंगा __ और श्रीआत्मारामजीको अपने पूर्व भवके पापोदयसे पहिले ढूंढियोंके मिथ्या कल्पित मतमें दीक्षा लेनी पड़ी थी वहाँ भी अपने कल्पित मतके कदाग्रहकी बात जमानेके लिये अनेक शास्त्रोंके उलटे अर्थ करते थे तथा अनेक शास्त्रों के पाठोंको छोड़के अनेक जगह उत्सूत्र भाषण करके संसार वृद्धिका भय न करते हुवे भोले दृष्टिरागियोंको मिथ्यात्वकी भ्रमजाल में गेरते थे और मिथ्यात्वरूप रोगके उदयसें श्रीजिनेश्वर भगवान्की आज्ञा मुजब सत्य बातोंको कल्पित समझते थे और श्रीजिनेश्वर भगवान्की आज्ञा विरुद्ध अपने मत पक्षकी कल्पित मिथ्या बातोंकों सत्य समझते थे और हजारों श्रीजैन शास्त्रोंको उत्थापन करके सत्य बातोंके निन्दक शत्र बनते थे इत्यादि अनेक तरह के कार्यों से अपने ढूंढक मतकी मिथ्या कल्पित बातोंको पुष्ट करके अपने मतको फैलाते थे परन्तु कितनेही वर्षों के बाद अपने पूर्व अवके महान पुण्योदय होनेसे ढंढकमतके पास. For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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