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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३२६ ] भी महानू उत्सूत्र 'आत्म' के ' उत्तमपुरुषोंके बनाये ग्रन्थों पर श्रद्धा नही रखते हुवे अपने अन्तरके मिथ्यात्वको प्रगट करके भोले जीवों को भी शुद्ध श्रद्धारूपी सम्यक्त्व रत्न 'भ्रष्ट करनेका कार्य्य किया सो भाषण है इसका विस्तारसे निर्णय पृष्ठ १३८ से पृष्ठ १५५ तक छपगया है । १५ पदरहमा - श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंने चैत्यवन्दनादिके सूत्रोंके उपधान कहे है तथा खास न्यायां - भोनिधिजी भी अपना बनाया 'तत्व निर्णय प्रासाद' नामा ग्रन्थ के पृष्ठ ४५० से ४६४ तक उपधानकी व्याख्या उपर मुजबही करी है और श्रीभगवतीजीमें सामायिकको स्वयं आत्मा कहा है इसलिये आत्माके उपधान नही होते हैं और किसी भी शास्त्र में सामायिक के उपधान नही लिखे है तथापि जैन० ना०' पु० के में सामायिकके उप पृष्ठ ४३ धान उहराते हैं सो भी उत्सूत्र भाषण है इसका विस्तार 'आत्म० के' पृष्ठ १५६ से १६० तक छपगया है । १६ सोलहमा - श्री शवैका लिकजी सूत्रकी चूलिका में श्री सीमंधरस्वामीजी महाराजने साधुकेही अधिकारका वर्णन किया है सो प्रसिद्ध है तथापि न्या०ने 'जैन० ना० पु०के' पृष्ठ ४४-४५ में श्रीहरिभद्रसूरिजीकृत गृहद्वृत्तिके पाठको अगाड़ी का पिछाड़ी और पिछाड़ीका अगाड़ी उलट पुलट करके भी अधूरा लिखके फिर पृष्ठ ४५ के अन्त में साधुके अधिकार वाले पाठको श्रावकके अधिकार में स्थापन करनेके लिये खूबही परिश्रम किया है सो भी उत्सूत्र भाषण है इसका विस्तार 'आत्म के' पृष्ठ ११० सें १९५ तक छपगया है । ११ सतरहमा --- श्रीजैनधर्माचार्य्यजी पूर्वापर विरोध For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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