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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३२३ ] नवमा--श्रीतपगच्छके श्रीजयचन्द्रसूरिजी जो कि श्री आवश्यकवहत्ति वगैरह अनेक शास्त्रानुसार तथा अपने ही गच्छके नायक श्रीदेवेन्द्रसूरिजी कृत श्रीश्राद्धदिनकृत्य सूत्रकी वृत्तिके और खास अपने काका गुरुजी श्रीकुलमण्डनसूरिजी कृत श्रीविचारामृतसंग्रहनामा ग्रन्थ के अनुसार सामायिकाधिकारे प्रथम करेमिभंते पीछे इरियावही श्रद्धापूर्वक मान्य करने वाले थे उन्ही महाराजकृत श्रीप्रतिक्रमणगर्भहेतुनामा ग्रन्थ में साधु और पौषधवाला श्रावक दोनोंके वास्त इरियावही पूर्वक राई प्रतिक्रमण करनेका खुलासा पाठ है जिसमें भी प्रतिक्रमणके सम्बन्धी सब पाठको छोड़ करके ग्रन्थकार महाराजके विरुद्धार्थ में न्याने 'जैनना पु०के' पृष्ठ ३५ वा के मध्यमें थोड़ासा अधूरा पाठ लिखके फिर भी मूल पाठके बिना भाषार्थ में सामायिक शब्दका ज्यादा प्रयोग करके सामायिकमें प्रथम इरियावही स्थापन करी सो भी उत्सूत्र भाषण है इसका भी विस्तार 'आत्म के' पृष्ट १९२ तक छपगया है। १० दशमा--श्रीपञ्चम गणधर महाराजकृत श्रीभगवतीजी मूलसूत्रके तथा श्रीखरतरगच्छ नायक श्रीअभयदेवसरीजी कृत तवृत्तिके बारहवें शतकके प्रथम उद्देशमें पौषधके अधिकारमें पुष्कली नामा श्रावक सम्बन्धी इरियावही कही है ( सो छपी हुई श्रीभगवतीजीके पृष्ठ ८१९८२ में अधिकार है ) जिसके भी आगे पीछेके पौषध अधिकारवाले पाठको छोड़ करके न्या० ने 'जैन ना० पुर' के पृष्ठ ३५ के अन्त में थोड़ासा अधूरा पाठ लिखके श्रीसत्रकार तथा वृतिकार महाराजके विरुद्धार्थ में सामायिकमें प्रथम For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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