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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३०७ ] युक्त बात हैं इसलिये प्रथम वाद विवादका कारण श्रीखरतरगच्छवालोंकी तरफसे नही किन्तु मीतपगच्छवालोंकीही तरफसें होता है ;___ और (बेरिस्टरनं खोटंनाम लखी छपावामां आवेलछे) छठे महाशयजीका यह भी लिखना द्वेष बुद्धिका मिथ्या है क्योंकि यह तो दुनिया में प्रसिद्ध व्यवहार है कि-ऋषभ, महावीर, वर्द्धमान, गौतम, इन्द्र, लक्ष्मीपति, अमर, राजा, महाराज, सिंहजी, इत्यादि अपने संसारिक सम्बन्धियोंमें अनेक तरह के व्यवहारिक नाम होते हैं उसी नामको बोलनेमें अथवा लिखने में कोई दूषण नही है और श्रीजैनशास्त्रों में भी व्यवहारिक नामसे अनेक बातें लिखने में आती है तैसेही उन्हको भी अपने संसारिक सम्बन्धियोंमें व्यवहारिक नामसे बेरिस्टर कहते हैं सोही नाम लिखा है उसीको छठे महाशयजी झठा ठहराते हैं सो तो प्रत्यक्ष द्वेष बुद्धिका कारण है ; और छठे महाशयजीने लिखा है कि ( तपगच्छ उपर हुमलो कर्या सिवाय बीजुकाई पण मालम पड़तु नथी ) इन अक्षरों पर भी मेरेको इतनाही कहना है कि सत्ययुग चौथे कालमें भी श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंके अमृत समान धर्मोपदेशको सुन करके भी-भारी कर्मे मिथ्यात्वी प्राणी उन्हीमहराजोंके अवर्णवाद बोलकर संसार रद्धिका कारण करते थे तो अब इस कलियुग पञ्चमकालमें गच्छुकदाग्रही, हठवादी, परिडताभिमानी, दुःखगर्भित, मोहगर्भित वैराग्य वाले, अन्तरमें श्रद्धारहित, मिथ्याभाषक, कलयुगी भारी कर्मप्राणी-श्रीजैनशास्त्रोंके प्रत्यक्ष प्रमाणोंका अवर्णवाद For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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