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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३०२ ] होता है उसी में सन् १९०८ के २-३ अङ्कमें छप चुका है उसी घासीराम और जुगलरामको गङ्गाजी भेजकर पवित्र कराने सम्बन्धी ढूंढकसाधुनामधारक कुंदनमल्लने १४ पृष्ठकी छोटीसी एक पुस्तक बनाकरके प्रगट कराई है सो पुस्तक छठे महाशयजीने वांची है और उन्हके पास भी है उसी पुस्तकमें छठे महाशयजीके गुरुजी न्यायाम्भोनिधिजी श्रीआत्मारामजी सम्बन्धी तथा श्रीजैनश्वेताम्बर मूर्तिपूजने वालों सम्बन्धी और श्रीसिद्धाचलजी श्रीगीरनारजी श्रीआबूजी श्रीसमेतशिखरजी वगैरह श्रीजैनतीर्थों सम्बन्धी अनेकतरहके अनुचित शब्द लिखके निन्दा करी है उसीके निमित्त भूत छठे महाशयजी वगैर हुवे हैं और उसी पुस्तकके पृष्ठ ३-४में घासीराम और जुगलरामको गङ्गाजीके जलसे पवित्र कराये तैसेही छठे महाशयजीके गुरुजी श्रीआत्मारामजीको गङ्गाजीके जलसें पवित्र न कराने के कारण अपने गुरुजीको और अपने गुरुजीकी सम्प्रदायमें दीक्षा लेनेवालोंको अपवित्र ठहरनेका कलङ्क लगवाया और पृष्ठ ११ में घासीराम, जुगल रामको गङ्गाजी भेजने वालोंको तथा भेजाने वालोंको और सम्मती देकर अच्छा समझने वाले छठे महाशयजी आदिको मिथ्यात्वी, पाखण्डी, वगैरह शब्दोंका इनाम दे कर फिर पृष्ठ १३ के अन्त में गङ्गाजी भेजने वालोंको श्रीजैनशासनको लांछन ( कलङ्क) लगानेवाले ठहराकरके तीन वार धीक्कारका इनाम दिया है। इस जगह निष्पक्षपाती सज्जन पुरुषोंको विचार करना चाहिये कि श्रीजैनतीर्थोंकी तथा श्रीजैनतीर्थों को मानने वालोंको द्वेष बुद्धिसे बड़ेही अनुचित शब्दोंसें निन्दा करके For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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