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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir २८२] करनेके लिये यदि ऊपरके अक्षर प्रमाण करनेके लिये होवे तो- अधिक मासकी गिनती, तथा पचास (५०) दिने पर्युषणा और श्रीवीरप्रभुके छ (६) कल्याणक, सामयिकाधिकारे प्रथम करेमिभंते पीछे इरियावही वगैरह अनेक बातें श्री तीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंने और पूर्वधरादि श्रीजैन शासन के प्रभाविक पूर्वाचाय्यने पञ्चाङ्गीके अनेक शास्त्रों में प्रगटपने खुलासे के साथ कही है जिस पर छठे महाशयजी की श्रद्धा नही जिससे प्रमाण नही करते हुए उलटा निषेध करके उत्सूत्र भाषण से संसार वृद्धिका भय नही रखते हैं । वीही आश्चर्य्यकी बात है कि श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजों की तथा पूर्वाचाय्यको कथन करी हुई अनेक बातें प्रमाण न करते हुए उत्सूत्र भाषणरूप अपनी मतिकल्प नासें चाहे वैसा वर्ताव करना और पूर्वाचार्य्यो का प्रमाण मंजूर करनेका दिखाकर आप भले बनना यह तो प्रत्यक्ष मायावृत्तिसे उठे महाशयजीनें अपने दम्भप्रिये नामको सार्थक करके विशेष पुष्ट करने के सिवाय और क्या लाभ उठाया होगा सो इन्ही ग्रन्थको पढ़नेवाले सज्जन पुरुष स्वयं विचार लेवेंगे ; और आगे फिर भी दम्भप्रियेजीनें लिखा है कि ( तुम्हारेही गच्छ के आचार्य्यका लेख प्रमाण न किया जावेंगा ) यह लिखना छठे महाशयजी दम्भप्रियेजीको श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंकी आशातना कारक पञ्चाङ्गी के अनेक शास्त्रोंका उत्थापनरूप मिथ्यात्वको बढ़ाने वाला संसार वृद्धिका कारणभूत हैं क्योंकि १ प्रथमतो- श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंकी परम् For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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