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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ २२१ ] पर्वतके चालीश योजनका शिखरको तथा अन्य भी हरेक पर्वतोंके शिवरों कों और देव मन्दिरोंके शिखरों को शास्त्रकारों ने क्षेत्रलाकी ओपमा दिवी है नतु केशांकी चोटीवत् घामकी, और श्रापञ्चपरमेष्टि मन्त्र के शिखररूप चार पदों को तथा श्रीआचाराङ्गका सूत्र के शिखररूप दो अध्ययनकों और श्रीदशवेकालिकजी सूत्रके शिखररूप दो अध्ययनको शास्त्रकारोंनें भावचूलाकी ओपमा दिवी है जिसकी अवश्यही गिनती करने में आती हैं । तैसेही । चन्द्रसंवत्सररूप कालपुरुष के शिखररूप अधिक मासकों कालचूलाको उत्तम ओपमा गिनती करने योग शास्त्रकारोंनें दिवों है और अधिक मास होनेसें तेरह मोंका अभिवर्द्धितसंवत्सर श्री अनन्त तीर्थङ्कर गणधरादि महाराजांने कहा है तो अनेक शास्त्रों में प्रसिद्ध है और खात करके अधिक मासको कालचूलाकी उत्तम ओपमा लिखने वाले श्रीजिनदास महत्तराचार्य्यजी पूर्वधर महाराज भी निश्चय करके गिनती में लेने का लिखते हैं, और भी दूसरा सुनों कि- जैसे | श्रीतीर्थङ्कर महाराजे के निज निज अंगुलियों के प्रमाणसे मस्तक तक शरीर की लंबाई १०८ अंगुलीकी होती है और मस्तक पर बारह अंगुलीकी उष्णिका ( शिखा ) की शिखररूप चूलाकी ओपमा है जिसकों सामिल लेकर १२० अंगुलीका श्रीतीथंङ्कर महाराज के शरीरके गिनतीका प्रमाण सब शास्त्रकारोंने कहा है । तैसेही । संवत्सररूप कालपुरुष का निज स्वभाविक प्रमाण ३५४ दिन, ११ घटीका और ३६ पलका है तथा संवत्सररूप कालपुरुषका शिखररूप अधिक मासको कालचूलाको ओपमा है जिसका प्रमाण २० दिन For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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