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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ९९१ ] और इन्ही महाराज श्रीजिनप्रभसूरिजीने श्रीसन्देहविषौषधी वृत्ति में श्रीकल्पसूत्र जीके मूलपाठकी व्याख्या किये बाद इन्ही श्रीकल्पसूत्रकी निर्युक्ति जो कि सुप्रसिद्ध श्रीभद्रबाहु स्वामीजी कृत है उसकी व्याख्या किवी है उसीमें काल aणाधिकारे समयादि कालसे आवलिकर, मुहूर्त, दिन, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, सम्वत्सर, युगादिकी व्याख्या करके आगे अधिक मासको अच्छी तरहसे प्रमाण किया है और प्राचीनकालाश्रय जैसे चन्द्रसंवत्सर में पचास दिने पर्युषणा तैसेंही अभिवर्द्धित संवत्सर में वीश दिने पर्युषणा खुलासा पूर्वक कही है और श्रीनिशीथ चूर्णिके दशवे उद्दशेमें जैसे पर्युषणा सम्बन्धी व्याख्या है तैसेही उन्ही महाराजने भी प्रायः उसीके सदृश अच्छी तरहसें व्याख्या किवी हैं और इन्ही महाराज श्रीजिनप्रभ सूरिजीने श्रीविधिप्रपा नाम ग्रन्थ बनाया है उसीके पृष्ठ ५३ में जैसा पाठ है वैसाही नीचे मुजब जानो ; आसाढ चम्मा सियाओ नियमा पसासइमे दिणे पज्जो सवणा काय न इक्कपंचासइमे जयावि लोइय टिप्पणयाणुसारेण दो सावणा दो भट्त्रया वा भवंति तयावि पा सहमे दिणे नउण कालचूलाविस्काए असीहमे सates राइमासे वकते पज्जोसवर्णतित्ति वयणाउं जंच अभिवढियंमि वीसत्तवृत्तं तं जुगमज्जे दो पोसा जुगअंते दक्षेवी आसाढत्ति सिद्धतटिप्पणयाणुरोहेणं चेव घडइ ते संपयं नवह तित्ति जहुत्तमेव पज्जोरावणादिणति ॥ अब सत्यग्राही सज्जन पुरुषों से मेरा इतनाही कहना है कि उपरमें श्रीखरतरगच्छ के श्रीजिनप्रभयरिजीने श्रीसन्देह For Private And Personal -
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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