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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ १७ ] भाष्य, चूर्णि, वृत्त्यादि अनेक शास्त्रोंमें भासवृद्धि होने से प्रावणमासमें पर्युषणा करना लिखा है इसका विशेष निर्णय तीनों महाशयोंकी समीक्षामें शास्त्रोंके प्रमाण सहित न्याययुक्तिके साथ अच्छी तरह से इन्ही पस्तकके पृष्ठ १०७ सें पृष्ठ ११७ तक छप गया है उसीकों पढ़नेसे सर्व निर्णय हो जावेगा और दूसरा ( अधिक मास होवे तो श्रावण मासमें पर्युषणा करना ऐसा तो तुमारे गच्छ वाले भी नही कहगये है ) यह लिखा है सोभी प्रत्यक्ष मिथ्या है क्योंकि श्रीखरतरगच्छके अनेक पूर्वाचार्योंने अनेक ग्रन्थो में दो श्रावण होनेसें दूसरा श्रावणमें पर्युषणा करनी कही है सोही देखो श्रीजिनपतिमूरिजी कृत श्री सडपट्टक वृहद्वत्तिमें १। तथा श्रीसमा चारी ग्रन्थ में । २ । श्रीजिनप्रभ सूरिजी कृत श्रीसन्देहविषौषधी वृत्तिमें । ३ । तथा श्रीविधिप्रथा ग्रन्थमें । ४। श्रीउपाध्यायजी श्रीसमयसुन्दरजीकृत श्रीकल्पकल्पलता वृत्तिमें । ५। तथा श्रीसमाचारी शतकमें। ६। और श्रीलक्ष्मीबल्लभगणिजी कृत श्रीकल्पद्रमकलिका इत्तिमें।७। और श्रीतप गच्छ तथा श्रीखरतरगच्छ सम्बन्धी (तषा खरतर प्रश्नोत्तर)नाम ग्रन्थ है उसीमें। ८। और श्रीपर्युषणा सम्बन्धी चर्चापत्रमें । & । इत्यादि अनेक जगह खुलासापूर्वक दूसरे श्रावण में पर्युषणा करनेका श्रीखरतरगच्छके पूर्वाचार्योने कहा है तैसें ही श्रीतपगच्छके पूर्वाचार्योने भी अनेक ग्रन्थों में दूसरे श्रावणमें ही पर्युषणा करना कहा है और खास न्यायाम्भोनिधिजी भी शुद्धसमाचारी पुस्तक सम्बन्धी अपनी जैन सिद्धान्त समाचारी की पुस्तकके पृष्ट ८७ को पक्कि २२ वी में पृष्ठ ८८ प्रथम पंक्ति तक लिखते हैं कि ( श्रावण मास वढे For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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