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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir धर्गको अवश्यही निर्णय हो जावेगा कि अधिक मासको कालचूला की उत्तम ओपमा अवश्य ही गिनती करने योग्य शास्त्रकारोंने दिवो है इस लिये अधिकमासकी निश्चय करके मिनती करना ही सम्यक्त्वधारियोंको उनित है तथापि मायाम्भोनिधिजी अधिक मालको गिनती निषेध करते हैं सो कदापि नही हो सकती है इतने पर भी आगे फिर भी पृष्ट १९ के पंक्ति १४ वीं से पंक्ति १८ वो तक लिखते है कि (इस अधिकमासकों कालचूलामें तुमको भी अवश्य ही मानना पड़ेगा और नही मानोंगे तो किसी तरहसे भी आज्ञा भङ्ग रूप दूषणको गठड़ीका भार दूर नही होगा क्योंकि पर्युषणाके बाद १० ( सत्तर ) दिन रहने का कहा है कालचूला न मानोंगे तो १२० दिन हो जायगे ) इन अक्षरोंको लिखके शुद्धसमाचारी कारको पर्युषणाके पिछाड़ी १०० दिन होनेसे दूषण लगाते हैं सो न्यायाम्भानिधिजीका सर्वथा मिथ्या है क्योंकि मासाद्ध होते पर्युषणाके पिछाड़ी १०० दिन होने में कोई दूषण नहीं है इसका विस्तार उपरमें तथा तीनों महाशयों के नामकी समीक्षामें और भी कितनी ही जगह छप गया है उसीकों पढ़ के पाठकवर्ग सत्यासत्यका निर्णय कर लेना ;___और शुद्धसमाचारीकार तथा श्रीखरतरगच्छवाले अधिक मासको कालचूलाको उत्तम ओपमा जानके विशेष करके गिनतीमें बरोबर लेते हैं और न्यायांसानिधिजो अधिक मासको कालचूला कह करके भी शास्त्रकारोंका तात्पर्य्य सम बिना श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंके तथा श्री. निशोथचूर्णिकार और श्रीदशवैकालिकके चूलिकाको वृहद् For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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