SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 283
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ १५१ ] अब आगे चौथे महाशय न्यायांभोनिधिजी श्रीआत्मारामजीने, जैनसिद्धांतसमाचारी, नामा पुस्तक में पर्युषणा सम्ब न्धी लेख लिखाया है जिसकी समीक्षा करके दिखाता हुं ;जिसमें प्रथम श्रीखरतरगच्छके श्रावक रायबहादुर मायसिंहजी गेघराजजी कोठारी श्रीमुर्शिदाबाद अजीमगञ्ज निवासीको तरफसे, शुद्धसमाचारी, नामा पुस्तक छपके प्रसिद्ध हुई थी, जिसमें श्रीतीर्थंकर गणधर,चौदहपूर्वधरादि पूर्वाचार्योंके अनेक शास्त्रोंके पाठों करके सहित और युक्ति पूर्वक देश कालानुसार श्रीजिनेश्वर भगवान् की आज्ञा मुजब अनेक सत्य बातों की प्रगट किवी थी, जिसको पढने में श्रीन्यायांभोनिधिजी तथा उन्होंके सम्प्रदायवाले मुनिजन और उन्हों के दृष्टिरागी श्रावकजन समुदाय सत्यबातको ग्रहण तो न कर सके परन्तु अंतर मिथ्यात्व और द्वेषबुद्धिके कारणसे उसका खण्डन करने के लिय अनेक शास्त्रों के आगे पीछे के पाठोंको छोड़कर शास्त्रकार महाराज के विरुद्धार्थ में उलटा संबंध लाकर अधरे अधूरे पाठ लिखके शुद्धसमाचारी कारकी सत्य बातोंका खण्डन किया और अपनी मिथ्या वातोंको उत्सूत्र भाषण - रूप स्थापन किवी जिसके सब बातोंकी समालोचनारूप समीक्षा करके उसमें शास्त्रों के सम्पूर्ण सम्बन्धके सब पाठ तथा शास्त्रकार महाराजके अभिप्रायः सहित और युक्ति पूर्वक भव्य जीवोंके उपगारके लिये इस जगह लिखके न्यायांसोनिधिजीके न्यायान्यायका विवारको प्रगट करना चाहु तो जरूर करके अनुमान ६०० अथवा ७०० पृष्ठका वडा शारीएक ग्रन्थ बन जावे परन्तु इस जगह विस्तारके कारण और हमारे विहारका समय मजिक आनेके सबबसे सबक For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy