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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १४६ ] चौमासीसे पचास दिने पर्युषणा करनेकी पूर्वाचार्योंकी आज्ञा है। इस तरहसे तीनों जहाशयोंने चार प्रकारसे खुलासा लिखा है इस पर बुद्धिजन पुरुष तत्त्वग्राही होके विचार करो कि प्राचीनकालमें पाँच पाँच दिनकी वृद्धि करते दशवें पञ्चकमें पचास दिने सासवृद्धि के अभावसे जैन एचाङ्गानुसार भाद्रपदशुक्ल पञ्चमी परन्तु श्रीकालकाचार्यजीसें चतुर्थीको पर्युषणा होती है परन्तु अब लैकिक पञ्चाङ्गमें हरेक मासकी वृद्धि होने से प्रावणभाद्रपदादि मास भी बढ़ने लगे इसलिये मासवृद्धि हो अथवा न हो तो भी पचास दिने पर्युषणा करनेकी पूर्वाचार्यों की आज्ञा हुई तब सासवृद्धि होते भी भाद्रपद मेंही पर्युषणा करनेका निश्चय नही रहा किन्तु दो श्रावण होने से दूजा श्रावणमें और दो भाद्रपद होनेसे प्रथम भाद्रपदमें पचास दिने पर्युषणा करने का नियम इस वर्त्तमानिक कालमें रहा जिससे दो श्रावण तथा दो भाद्रपद और दो आश्विन मास होनेसें पर्युषणाके पीछाड़ी ७० दिनका भी नियम नही रहा अर्थात् मासवृद्धि होने से पर्युषणाके पीछाड़ी १०० दिन श्रीतपगच्छ के ही पूर्वजोंकी आज्ञानुसार रहते हैं यह तात्पर्य तीनों महाशयों के लिखे वाक्य परमें सर्यकी तरह प्रकाश कारक निकलता हैं सो न्यायकीही बात है इस बातको अपने पूर्वजों की आशातनासे डरनेवाला कोई भी प्राणी निषेध नही कर सकता है तथापि इन तीनों महाशयोंने अपनी विद्वत्ताकी बात जमानेके लिये वाप्त अपनेही पूर्वजोंका उपरोक्त वाक्यको जड़ मूलसेही उठाकर अपने पूर्वजोंकी आज्ञा लोपते हुवे दो श्रावण होते. भी भाद्रपद में पर्युषणा करनेका और मारु वृद्धि For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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