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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ १४३ ] मान्य करलिये तब एक रुपैया तो स्वयं मान्य होगया, तथापि निषेध करना, सो बे समझ पुरुषका काम है तैसेही तीनों महाशयोंने भी जब देवपूजा, मुनिदानावश्यक (प्रतिक्रमण) वगैरह धर्मकर्म ३० दिनोंमें मान्य लिये तब तो ३० दिनका एक अधिक मास तो स्वयं मान्य होगया, तथापि फिर अधिक मासको गिनती करने में निषेध करना सो हठवादसे निःकेवल हास्यका हेतु लज्जाका घर और तीनों महाशयोंकी विद्वत्ताकी लघुताका कारण है ,___ तथा और भी सुनिये जब इस जगह तीनों महाशय ३० दिनोंमें धर्मकर्म मान्य करते है जिससे अधिक मास भी गिनती में सिद्ध होता हैं फिर पर्युषणाके संबंधमें दो प्रावण के कारणसें भाद्रपद तक प्रत्यक्ष ८० दिन होते है जिसको निषेध करके ८० दिनके ५० दिन बनाते है और अधिक मासको निषेध करते है सो कैसे बनेगा अपित कदापि नही, इस लिये जो ८० दिन के ५० दिन मान्य करेगे तब तो अधिक मासके ३० दिनों में देवपूजा मुनिदानावश्यकादि कुछ भी धर्मकर्म करनाही नहीं बनेगा और अधिक मासके ३० दिनोंमें धर्मकर्म करना तीनों महाशय मंजर करेंगे तो अधिक मासके ३० दिनका धर्मकर्म गिनतीमें आजावेगा तब तो दो श्रावण हनेसे भाद्रपद तक ८० दिन होते है जिसका निषेध करनाही नही बनेगा और ८० दिने पर्युषणा करनी सो भी शास्त्रोंके प्रमाण बिना होनेसे जिनाज्ञा विरुद्ध तीनों महाशयोंके वचनसे भी सिद्ध होगई—इस बातको पाठकवर्ग बुद्धिजन पुरुष विशेष स्वयं विचार लेना , और आगे फिरभी तीनों महाशयोंने अभिवर्द्धित For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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