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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ १२३ ] पकरणधरण मभिनवोपकरणग्रहणं स क्रोशयोजनात्परतो गमनवर्जन मित्यादि। देखिये उपरोक्त पाठमें श्रीवृत्तिकार महाराज, चार मासके वर्षाकालमें अभिवहित संवत्सरमें वीस दिन और चन्द्र संवत्सरमें पचास दिन के उपरान्त विहार करने वालोंको छ कायके जीवों की विराधना करने वाला कहा अर्थात् वीसे और पचासै अवश्यही पर्युषणा करनी कही सो यावत् कार्तिक तक याने अभिवद्धि तमें वीस दिने पर्युषणा करनेसे पीछाडी १०० दिन और चन्द्रमें पचास दिने पर्युषणा करनेसे पीछाडी 90 दिन उसी क्षेत्रमें ठहरे ॥ इत्यादि ॥ - अब श्रीजिनेश्वर भगवान् की आज्ञाके आराधन करने वाले मोक्षाभिलाषि निपक्षपाती सज्जन पुरुषों को इस जगह विचार करना चाहिये कि श्रीगण धर महाराज, श्रीसमवायांगजी मूलसूत्र में और श्रीअभयदेवसरिजी महाराजनें वृत्तिमें मास वृद्धिके अभावसे चन्द्रसंवत्सर में जैन ज्योतिषके पंचाङ्गकी रीतिमुजब वर्तने के अभिप्रायले चार मासके वर्षाकालमें प्रथम पचास दिन जानेसे और पीछाडी ७० दिन रहने से पर्युषणा करनी कही है तथा विशेष खुलासा करते वत्तिकार महाराजने योग्यक्षत्रके अभावसे वृक्ष नीचे भी पचास दिने अवश्यही पर्युषणा करनी कही और अभिवर्द्धित संवत्सरमें वत्तिकार महाराजने और पूर्वधरादि महाराजोंने वीस दिने अवश्यही पर्युषणा करनी कही है जिससे पीछाडी एकसो दिन रहते हैं;-तथापि ये तीनों महाशय अपनी कल्पनासें वृत्तिकार और पूर्वधारादि महाराजों का ( अनिवर्द्धितमें वीस दिने पर्युषणा करनेसे पीछाडी एकसो For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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