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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ १०४ ]. प्रतिक्रमणादि भी पूर्वधरों के समय में जैन ज्योतिषानुसार करने में आतेथे सो उपरमें लिख आया हु और आगे भी खुलासापूर्वक लिखंगा वहां विशेष निर्णय होजावेगा__ और आषाढ़ चौमासी प्रतिक्रमण किये बाद योग्यतापूर्वक पांच पांच दिने पर्युषणा करे सो सिर्फ एक श्रीकल्पसूत्रका रात्रिको पठण करके पर्युषणा स्थापन करे परन्तु अधिकरण दोष उत्पन्न होने के कारणसे गृहस्थो लोगों को कहे नही और अभिवद्धित संवत्सरमें वोशदिने तथा चन्दसंवत्सरमें पचासदिने वार्षिक कृत्य सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि करने से गृहस्थी लोगों को पर्युषणाको मालुम होती है सो यावत् कार्तिक पूर्णिमा तक उत्ती क्षेत्र में साधु ठहरे सर्वथा प्रकारसै एक स्यानमें निवास करना सो पर्युषणा कही जाती है इश्व लिये आषाढ़ चौमाप्ती पीछे योग्यतापूर्वक जहां निवास करे उतीको पर्युषणा कहते हैं सो अज्ञात पर्युषणा कही जाती है और चन्द्र संवत्सरमें पचास दिने तथा अभिवद्धितमें वीशदिन सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि करने से ज्ञात पर्युपणा कही जाती है इसका विशेष विस्तार आगे भी करने में आवेंगा और श्रीदशाश्रुतस्कन्धचूर्णािके तीस (३२)के पृष्ठ में (पढमंकाल ठवणा अशामि किंकारमजेण एवं सुत्त काल ठवणाएसुत्ता देसे ण परुवेयव कालो समयादिओ,गाथा--असंखेज्ज समया आवलिया एवं सुत्तालावएण जावसंवच्छ एत्थपुण उदूवढे वासारतेण पयगंतं अधिकारेत्यर्थः ) इत्यादि व्याख्या प्रथम किवी हैं सो इस पाठमें कालकी व्याख्यासूत्रानुसार करनी कही है। समयादि काल करके असंख्याते समय जाने से एक For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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