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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ १०२ ] जानी हुई पर्युषणा कहते हैं और भाद्रपद शुक्लपञ्चमी के उपरान्त विहार करना सर्वथा नही कल्पे इस लिये योग्यक्षेत्र के अभाव से वृक्ष नीचे भी अवश्य ही निवास ( पर्युषणा ) करना कहा है जैसे चन्द्रवर्षमें पचास दिनका निश्चय है तैसे ही अभिवर्द्धितवर्ष में वीशदिने श्रावण शुक्ल पञ्चमीकी निश्चय पर्युषणा करने का नियम था परन्तु वीशदिनमें श्रावण शुक्लपञ्चमीकी रात्रिको उल्लङ्घन करना सर्वथा प्रकारसे नही कल्पे इस तरह पञ्चमी, दशमी, पूर्णिमादि पर्व तिथि में पर्युषणा करे, परन्तु अपर्वमें नही, जब शिष्य पूछता है कि आप अपर्व में पर्युषणा करना नही कहते हो फिर चतुर्थीका अपर्व में कैसे पर्युषणा करते हो तब आचार्य्यजी महाराज कहते है कि कारस्म से चतुर्थी को पर्युषणा करनेमें आते हैं सोही कारण उपरोक्त पाठानुसार जैन इतिहासों में तथा श्रीकल्पसूत्र की व्याख्याओंमें प्रसिद्ध है और इसी पुस्तक में पहिले संक्षेप से लिखा गया है इस लिये यहां भाषार्थ में विस्तार के कारण से नहीं लिखता हुं, अब जघन्य, मध्यम, और उत्कृष्ट से पर्युषणाके कालावग्रहका प्रमाण कहते है कि चार मासके १२० दिनका वर्षाकाल होता है तब आषाढ चौमासी प्रतिक्रमण किये बाद पचास दिने पर्युषणा करे तो सत्तर (90) दिवस जघन्यते कार्त्तिक चौमासी तक रहते हैं परन्तु योग्यक्षेत्र भिलनेते भाद्रव कृष्ण दशमी को ही पर्युषणा कर लेवे उतीको ८० दिन मध्यमते रहते हैं तथा श्रावण पूर्णिमा को पर्युषणा करे तो ० दिन मध्यमसे रहते हैं । इसी तरह यावत् श्रावण कृष्ण पञ्चमी को तो ११५ दिन मध्यम से रहते हैं और आषाढ पूर्णिमासे ही पर्युषणा किवी हो For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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