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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ १०० ] इसलिये कुछ विशेष अशुद्धता होवे तो दूसरी शुद्ध पुस्तक उपरोक्त दोनों पाठका मिलान करके बाँचना अब्ज उपरोक्त दोj पाठका संक्षिप्त भावार्थः सुनो-वर्षाकालके लिये एक क्षेत्रमें प्रवेश करना ठहरना सो कितना काल तक मोही कहते हैं आपाड़पूर्णिनासे लेकर उत्सर्गते पर्युषणा करे अथवा प्रवेश करे सो यावत् कार्तिक पूर्णिमा तक रहे और अपवादसे मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी तक यावत् रहे तथा फिर भो कारणयोगे दो दशरानि ( बोशदिन ) याने मार्गशीर्ष पूर्णिमा तक भी रहना कल्प सो प्रथम किस विधिले प्रवेश करके पर्युषणा करे वह दिखाते हैं---जहां आषाढ़मानकल्प रहा होथे वहाँ अथवा अन्य क्षेत्र में आपाळ पूर्णिमाके दिन चौमाली प्रतिक्राण किये बाद प्रतिपदा ( एकल ) से लेकर पाँच दिनमें उपयोगी वस्तु ग्रहण करके पञ्चमी रात्रि याने श्रावण कृष्ण पञ्चमीकी रात्रिको पर्युषणा कल्प कहके वर्षाकालको समाचारी को स्थापन करे, याने पर्युषणा करे, सो अधिकरण दोष न होने के कारण और उपद्रवादि कारणले दूसरे स्थानमें जावेतो अवहेलना न होवे इसलिये अनिश्चय पर्युषणा करे, अधिकरण दोषोंका वर्णन संक्षेपसे पहिलेही लिखा गया है इसलिये पुनः नही लिखता हु और निश्चय पर्यु घसा कब करे सो कहते हैं कि अभिवद्धित वर्ष में वोशदिने और चन्द्रवर्ष में पधाशदिने निश्चय पर्यषणा करे, क्योंकि जैसे युगान्त में जब दो आषाढ़ होते हैं तब ग्रीष्म ऋतु में चेव निश्चय अधिक मास व्यतीत होजाता है इसलिये अभिवद्धित वर्षमें आयाढ़ चौमासी प्रतिक्रमण किये बाद प्रतिपदासे वीशदिन तक अनिश्चय पर्युषणा For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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