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[ ४ ] लगाइ कययभूमीय बद्ध वासंच गाद भणोरयं आढ़त, ताहे आसाढ़पुसिमाए चेव पज्जोसविज्जति, एवं पंचाहं परिहाणि मविकत्योध्यते, श्य सत्तरी गाथा, इय प्रदर्शने आसाढ़चार मासिया तो सवीसति राते मासे गते पज्जोसर्वेति, तेसि सत्तरी दिवसा जहणतो जेटोग्गहो पति, कहं पुण सत्तरी, चयह मासाणं सवीसं दिवस सत भवति, ततो सवीसत्ति रातो मा ।, यासंदिवसा सो वितो सेसा सत्तरी, दिवसा जे भदवय अहुलस्स दसमीए पज्जोसवेति, तेसिं असीति दिवसा जेटोग्गहो, जे सावण पुसिनाए पज्जोसर्वेति तेसि णउतिदिवसा जेटोग्गहो, जे सावण बहुल दसमी ठिता तेसिं दसुत्तरं दिवप्तसत जेट्ठोग्गहो, एवमादीहिं पग्गारोहिं परिसारत्तं एग खेत्ते अत्थिता कत्तिय चाउमासिए णिग्गंतवं, अह वासण उवरमति, तो मग्गसिरे मासे जं दिवस पक्क मद्वियं जात तदिवस चेव निग्गंतवं, उक्कोसेण तिन्नि दसराया न निगच्छज्जा मगसिर पुसिमाएत्ति भणियं हरेइर मग्गसिर पुस्मिमाए परेण, जइविप्लवंतेहिं तहवि णिग्गंतवं, अथ न निगच्छंति तो चउलहुग्ग, एवं पंचमासिसं जेट्ठोग्गहो जाओ, कातरा गाहा लासाढ़नासकप्पं का जत्य अन्न वासा वासे पारणे अत्य आमाडमासकप्यो को तत्य व पज्जोसविते आसाढ़ पुतिमाए वा सालंबणाणं मांगसिर पिसव, वासा णतो विरमति से या जिग्गता असीवादीणिवा वाहिपवं सालंबणाणं मासि तो जेटोग्गहो ॥ इत्यादि । __ और श्रीजिनदास महतराचार्यजी पूर्वधर महाराज कत श्रीनिशीथ सूत्रकी चूर्णिके दशमे उद्देशेके पृष्ठ ३२१ से पृष्ठ ३२४ तक का पर्युषणा सम्बन्धीका पाठ नीचे मुजब जानो, यथा--
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