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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ २ ] (दशाश्रुतस्कन्ध सूत्रका अष्टम अध्ययनके ) चूर्णिके पृष्ठ ३१ से ३२ तक तत्पाठः आसाढ़चातम्मासियं पडिक्कमंति, पंचहिं दिवसेहिं पज्जो सवणा कप्पं कढ्ढेति, सावण बहुल पंचमीए पज्जोसवेति णच वाहिद्वितेहिं ण गहिता णित्थरादीणि, ताहे कथं कहता घेव गिरहंति मलयादीणि एवं आसाढ़पुरिममाए ठिता, जाव मग्गशिरबहुलस्स दसमी, तावएगंमि खेत्ते अच्छज्जा, तिन्निवा दस्सराता, एवंतिनिपुण दस राता, चिरकलादीहि कारणेहिं॥ एत्थउ गाथा पत्थंति पज्जोसविते, सवीसति राय मासस्स आरात्तो जति गिहत्या पुच्छंति, तुभ्भे अज्जो वासा रत्तं ठिता, अहवा ण ठिता एवं, पुच्छितेहिं, जति अहिवढिढय संवच्छरे, जत्य अहिमासतो पडिति तो, आसाटपुणिमाओ वीसति राते गते अमति, ठितामोति आरतो ण कथयति वोत्थं ठिता मोति, अथ इतरे तिन्नि बंद संवच्छरा तेसु रुवीसति राते मासे गते भमति, ठितामोति आरतो ण कथयति वोतुंठिता मोति, किं कारणं असिवादि, गाथा कयाइ, असिवादीणि उप्प ज्जेज्ना जेहिं निग्गमण होज्जा ताहेति, गिहत्था मज्ज, ण किंचि एते जाणंति, मुसावात वाउलावेंति, जेण ठितामोति भणित्ता, निग्गत्ता, अहवा कासं ण सुट्ठ आरद्धं, तेण लोगो भीता धणज्जंपितुं,ठितो साहूहिं भणितो ठियामोति जाणति, एते वरिसास्सति तो सुयामो धरम विक्किणामो, अधि करणं घराणियत्थप्पंति, हलादीणय संवप्पं करेंति, जम्हा एते दोसा, तम्हा वीसती राते आगते, सवीसति राते वा मासे आगते, ण कथंति वोतुंठितामोति॥ एत्थउ गाथा॥ आसाढ़पुसिमाए ठिताणं जतितणडगलादीणि गहियाणि,पज्जोसवणा कप्पोय For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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