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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ( २२ ) १०० दिन रहते थे इसलिये वर्तमानमें मास वृद्धि दो श्रावणादि होते भी पर्युषणाके पिछाड़ी 90 दिन रखनेका माग्रह करना सो अज्ञानता से प्रत्यक्ष अनुचित है और जैन पंचाङ्ग इस कालमें अच्छी तरहसे नहीं जाना जाता है इसलिये उसी के अभाव से लौकिक पंचाङ्गानुसार जिस महीने की जिस जगह वृद्धि होवे उसीकोही उसी जगह गिनना चाहिये परन्तु अन्य कल्पना नहीं करनी, अर्थात् जैन पञ्चाङ्गके अभावसे लौकिक पञ्चाङ्गानुसार पौष, आषाढ़ के सिवाय चैत्र, श्रावणादि मासों के वृद्धिकी गिनती निषेध करनेके लिये गच्छाग्रहसे अपनी मति कल्पना करके अन्यान्य कल्पनायें भी नहीं करनी चाहिये क्योंकि लौकिक पंचाङ्कानुसार चैत्र, श्रावणादि मासेोंकी वृद्धि होनेका प्रत्यक्ष प्रमाणको छोड़ करके पौष आषाढ़ की वृद्धि होनेवाला जैन पंचाङ्ग वर्तमान में प्रचलित नहीं होते भी उसी सम्बन्धी मास वृद्धिका अप्रत्यक्ष प्रमाणको ग्रहण करनेका आग्रह करना मो भी योग्य नहीं है क्योंकि जैन पंचाङ्गके अभाव से लौकिक पंचाङ्गानुसार वर्ताव करते भी उसी मुजब मास वृद्धिकी गिनती नहीं करना एसा कोई भी शास्त्रका प्रमाण नहीं होनेसे गच्छाग्रहकी युक्ति रहित कल्पना भी मान्य नहीं हो सकती है और आषाढ़ चौमासोसे ५० दिने दूसरे श्रावण में पर्युषणा करना सो तो शास्त्रोक्त प्रमाण पूर्वक तथा युक्ति सहित प्रसिद्ध न्यायकी बात है । और अब प्राचीनकाल में जैन पंचाङ्गानुसार पर्युषणा की मर्यादावाला एक पाठ वांचक वर्गको ज्ञात होनेके लिये दिखाता हूं श्रीचैत्रवालगच्छके श्रीजगचंद्र सूरिजीकी परंपरामें For Private And Personal
SR No.020134
Book TitleBruhat Paryushananirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar Maharaj
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages585
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size10 MB
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