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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वर्धमानकः ९३८ वर्षवरः वर्धमानकः (पुं०) एक पात्र विशेष, ढक्कन, चपनी। वर्धमानत (वि०) बढ़ते हुए, विकास करते हुए। (सुद०३/२७) वर्धय (अक०) प्रसार करना, विकास करना, फैलाना विस्तृत होना। (सुद०३/१३) 'जगदाह्लादको बालचन्द्रमाः समवर्धत' (वीरो०८/७) वर्धयत् (वि०) बढ़ते हुए, विकास करते हुए-इङ्गितेन निजस्याथ - वर्धयन्मोदवारिधिम्। (वीरो० ८/७) वर्धयन्त (वर्धय्+शतृ) बढ़ते हुए, प्रसार करते हुए। वर्धस्व (वि०) बधाई। (जयो०वृ० २६/२८) वर्धापनं (नपुं०) [वर्ध छेदं करोति-वृध्-णिच् आप ततो भावे ल्युट्] ०काटना, बांटना। . छेदन करना, भेदन करना। वर्धित (भू०क०कृ०) [वृध+णिच+क्त] बढ़ता हुआ, विकास करता हुआ। विस्तृत किया हुआ, फैला हुआ। विशाल बनाया हुआ। वर्धिष्णु (वि०) [वृध+इष्णुच] .वर्धनशील. विकासशील। फलने फूलने वाला। उमड़ने वाला, वृद्धिशील। बर्द्धिष्णुरधुनाऽऽनन्दवारिधिस्तस्य तावता। (जयो०वृ० १/१०२) 'गुण समुद्रो वर्धिष्णुः वृद्धिशीलोऽभवत्' (जयो०वृ० १०२) वर्धिष्णुक (वि०) वर्धनशील, बढ़ती हुई, वृद्धिगत। तेजोनिधौ सोमसुते प्रतीपा वर्धिष्णुके मृत्युमुखे समीपात्। (जयो० ८/५२) व (नपुं०) [वृध्+रन्] पट्टी, बेल्ट। ०सीसा, दर्पण। वधिका (स्त्री०) [वर्ध+ङीष् कन्+टाप] चमड़े की पट्टी, कमरबन्द। वर्मन् (नपुं०) [आवृणेति अंग-वृ-मनिन्] ०कवच। ०छाल, वल्कल। (जयो०८/१३) वर्मणः (पुं०) नारंगी तरु। वर्मिः (पुं०) वामी मछली, मत्स्य विशेष। वर्मित (वि०) [वर्मन्+इतच्] कवच युक्त, कवचधारी। (जयो० ३/१००) वर्मितं (वर्म तमन) कवचित. कवच करने के लिए। (जयो०२१/४) वर्य (वि०) [वृ+यत्] सर्वोत्तम, उत्कृष्ट। मुख्य, प्रधान, प्रमुख। वर्याः (पुं०) कामदेव, मदन। वर्या (स्त्री०) वरण करने वाली कन्या। वर्वरः (पुं०) वर्वर जाति, भील जाति। बुद्ध, प्रलापी, मूर्ख। जाति च्युत, बहिष्कृत। वर्वर (वि०) [वृ+अरच्] बल खाता हुआ, हकलाने वाला। वर्वरकं (नपुं०) [वर्वर+कन] चन्दन लकड़ी। वर्वरं (नपुं०) पीला चंदन। सिंदूर। वर्वरा (स्त्री०) मक्खी। वनतुलसी। वर्वरीकः (पुं०) [वृ+ईकन्] धुंघराले बाल। . वर्षः (पुं०) [वृष भावे घञ् कर्तरि अच् वा] द्वन्दसमासे वर्षम्। वर्षा, बारिश। मुमुदे समुदीक्ष्य ततपतिर्भुवि वर्षामिव चातकः सतीम् (सुद० २/३०) छिड़कना, सींचना, फेंकना, उत्सरण, बौछार। वर्षः (पुं०) वर्ष, साल, वर्ष (नपुं०) भारतवर्ष। (जयो०वृ० १/६) वत्सर, संवत्सर। ०क्षेत्र, स्थान। (भक्ति० ३४) (जयो० १/६) वर्षक (वि०) बरसने वाला, गिरने वाला। वर्षकरः (पुं०) मेघ, बादल। वर्षकोषः (पुं०) ०मास, महीना। ज्योतिषी, निमित्तशास्त्री। वर्षगिरि (पुं०) वर्ष पर्वत, वर्षधर पर्वत। वर्षज (वि०) बरसात से उत्पन्न। वर्षणं (नपुं०) [वृष ल्युट्] वर्षाकाल वृष्टि, वर्षा। (वीरो० १२/३३) (जयो०८/६२) (सुद० ३/३२) सिंचन, बौछार। वर्षधरः (पुं०) मेघ, बादल। वर्षधरगिरि (पुं०) वर्षधर पर्वत। (त०स०५१) तद्धिभाजिनः पूर्वापरायता हिमवन् महाहिमवन्निषध नील-रुक्मि शिखरिणो वर्षधरपर्वताः। (त०सू० ३/११) वर्षपूगः (पुं०) वर्षों का समुच्चय। वर्षप्रतिबन्धः (पुं०) अनावृष्टि, सूखा, अकाल। वर्षाभाव। वर्षप्रियः (पुं०) चातक पक्षी, चक्रवाक। वर्षयन्त (वृष्+शतृ) बरसते हुए। 'अखण्डरूपेण जगज्जनेभ्यो ऽमृतं समन्तादपि वर्षयन्तम्। (वीरो० १३/२४) वर्षवरः (पुं०) हिजड़ा, अन्तःपुर रक्षक। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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