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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हेतुक १२४८ हेला ० साधन, उपकरण। हेमकिञ्जल्कम् (नपुं०) नागकेशर पुष्प। ० तर्क, ० युक्ति। साध्याविनाभाविलिङ्गम्-साध्य के साथ | हेमकुम्भः (पुं०) स्वर्णपट। अन्वय-व्यतिरेक का होना। हेमकूटः (पुं०) सुमेरु, एक पर्वत विशेष। हेतुक (वि०) [हेतु+कन्] तार्किक, तर्क शक्ति युक्त। हेमगन्धिनी (स्त्री०) रेणुका नामक गन्धद्रव्य। ० प्रामाणिक, युक्त, संगत। हेमगिरिः (पुं०) सुमेरु। हेतुकः (पुं०) कारण, तर्क। हेमगौरः (पुं०) अशोक वृक्ष। हेतुता/हेतुत्व (वि०) हेतुपना! 'बन्धस्य हेतुत्वमुपैत्यसौ' हेमघटम् (नपुं०) स्वर्णघट। (जयो० १७/४२) स्वर्ण कलश। (सम्य० २७) हेमचन्द्रः (पुं०) सर्वविद्या प्रवीण आचार्य। हेतुमत् (वि०) [हेतु+मतुप्] सकारण, तर्कयुक्त। हेमपुष्प (पुं०) अशोकवृक्ष, लोध्र वृक्ष, चम्पकवृक्ष। सर्वेभ्यः स्वपदं तहेद्धितविधेर्भूमावहो हेतुमत्। (मुनि० १५) हेमलः (पुं०) सुनार। ० कारण और कार्य की विद्यमानता। हेममालिन् (नपुं०) दिनकर, सूर्य। हेतुवादः (पुं०) तर्क, वितर्क, शास्त्रार्थ। हेतु का निरूपण। हेमयूथिका (स्त्री०) सोमजूही। तर्कशास्त्र (वीरो० २/९९) हिनोति गमयति परिच्छिनत्त्यर्थ- हेमरागिणी (स्त्री०) हल्दी। मात्मानं चेति प्रमाणपञ्चकं वा हेतुः स उच्यते कथ्यते हेमशंखः (पुं०) विष्णु। अनेनेति हेतुवादः श्रुतज्ञानम्। (जैन०ल० १२/७) हेमसंजात (वि०) स्वर्णमय, सोने के समान। हेतुविचयः (पुं०) तर्क का आश्रय लेना। हेमसत्त्वं (नपुं०) सोना, स्वर्ण, कंचन। हेतुकोत्प्रेक्षा (स्त्री०) हेतु द्वारा विवेचन। हेमसहित (वि०) सोने से परिपूर्ण। एतत्कीर्तेरग्रे तृणायितं चन्द्ररश्मिभिश्च यतः। हेमसूत्रं (नपुं०) स्वर्ण मेखला। जीवति किलैणशावोऽसावोजस्के तदङ्कगतः। हेमसूत्रावली (स्त्री०) स्वर्ण मेखला, सोने की करधनी। (जयो० ६/४५) हेमस्तम्भः (पुं०) स्वर्ण स्तम्भ। हेत्वलङ्कारः (पुं०) हेनु नामक अलंकार, जिस अलंकार में हेमाङ्ग (वि०) सुनहरा। किसी अर्थ को उत्पन्न करने वाले कर्ता की योग्यता की हेमाङ्गः (वि०) गरुड़। युक्ति का प्रकाश किया जाता है। सिंह, ० सुमेरु। यत्रोत्पादयतः किञ्चिदर्थं कर्तुः प्रकाश्यते। हेमाङ्गदम् (नपुं०) बाजूवन्द। तद्योग्यतायुक्तिरसौ हेतुरुक्तो बुधैर्यथा।। (वाग्म० ४/१०४) हेमाण्डकः (पुं०) स्वर्ण कुश। (वीरो० २/३३) व्यञ्जनेष्विव सौन्दर्यमात्रारोपावसान को। हेमाब्जिनी (नपुं०) स्वर्णारविंद, सोने का कमल। (जयो० विसर्गों स्तन सन्देशात् स्मरणेद्देशितावितः।। (जयो० ३/४३) १८/९५) हेत्वाभासः (पुं०) हेतु का आभास होना, जो हेतु किसी कार्य हेमाम्भोरुहम् (नपुं०) सुनहरा कमल। का कारण न हो, परन्तु हेतु की तरह प्रतीत हो। अर्थात् हेय (वि०) [हा+यत्] छोड़ने योग्य, त्याज्य। स्त्रियास्तु वार्तापि जिसमें सव्यभिचार, अनैकान्तिक, विरुद्ध, असिद्ध, | सदैव हेया। (वीरो० १८/२९) सत्प्रतिपक्ष और बाधित भाव हो। हेयोपादेय (पुं०) छोड़ने एवं ग्रहण करने योग्य। हेमम् (नपुं०) स्वर्ण, सोना। (जयो०वृ० ६/७४) हेरम् (नपुं०) [हि+रन्] मुकुट विशेष। हेमः (पुं०) काले रंग का घोड़ा, हेमचन्द्राचार्या। हेरक्बः (पुं०) ० गणेश। ० भैंसा। हेमन् (नपुं०) [हि+मनिन्] स्वर्ण, सोना। हेरिकः (पुं०) [हि रक्-रुट आगमः] भेदिया, गुप्तचर। ० जल, बर्फ। हेलनं (नपुं०) [हिल्+ल्युट्] अवज्ञा करना, निरादर करना। ० धतूरा, ० केसर पुष्प। तिरस्कार करना, अपमान। हेमकंदलः (पुं०) प्रवाल, मूगा। हेला (स्त्री०) तिरस्कार, अपमान, अनादर। हेमकट/हेमकार/हेमकर्त (वि०) सुनार, स्वर्णकार। (जयो० ० केलि, क्रीड़ा, प्रेमालिंगन। १५/१३) ० कौतुक। (जयो० ७/७८) For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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