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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हुत हुत (भू०क० कृ० ) [हु+क्त] आहुति युक्त, होम किया हुआ । भस्मीकृत (जयो०१२/८७ ) हुतम् (नपुं०) आहूति, होम, चढ़ावा । (जयो० २/१३) (मुनि०१) हुतजात (वि०) होम से उत्पन्न हुआ । हुतधूप: (पुं०) हवन धूप। (जयो० १२ / ६७ ) हुल् (अक० ) ढांपना, छिपाना। हुलहुली (स्त्री०) अस्पष्टध्वनि। हु हु (पुं०) गन्धवं शब्द। हुतभुज् (पुं०) अग्नि, आग। हुतवह: (पुं०) अग्नि, आग। हुम् (अव्य०) [हु-डुमि] स्मरण बोधक अव्यय रोष, अरुचि, भर्त्सना, स्मरण, दाहड़ना, चिल्लाना आदि के रूप में प्रयुक्त होने वाला अव्यय। (जयो०वृ० १ / ९० ) हुर्छ (अक० ) टेढ़ा होना, बंक होना । हूण: (पुं०) असम्भ, एक जाति विशेष । ० सोने का सिक्का । www.kobatirth.org हूत (भू०क० कृ० ) [ ह्वे+क्त] आहूत, निमन्त्रित, आमन्त्रित । बुलाया गया। हूति: ( स्त्री०) आहूति । ० होम | ० निमंत्रण, बुलावा । 0 चुनौती | हूरव: (पुं०) [हू इति रयो यस्य ] गीदड़ । ह्र (सक०) लेना, पकड़ना, ग्रहण करना (सुद० ७२) ० हरण करना हरतीति । (जयो०वृ० १/७) ● अपहरण करना, छीनना। (जयो० २/२८) हरन्त (सुद० ७६) हर्तुम् (जयो० २ / १३५) • उत्पन्न करना। (सुद० ३ / १ ) ० प्रहार करना, आघात पहुंचना । हृज्ज (वि०) त्याग करने वाला। (दयो० २२) हणीया (स्त्री०) [हुणी+यक्+अ+टाप्] निन्दा, भर्त्सना । ० रखना, निक्षेप करना । ० चुराना, लूटना। परं कलत्रं हियतेऽन्यतो। (वीरो० ९ / १५ ) • आकर्षित करना, लुभाना (जयो०वृ० ३/४६) हर्तुम्वशीकर्तुम् आकृष्टकर्तृम्। • त्याग करना, छोड़ना । १२४६ ० लज्जा । ० करुणा । हृत् (वि० ) ( ह+ क्विप्, तुक् ] ले जाने वाला, अपहरण करने वाला । • हटाने वाला। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ० हृतः (पुं०) हृदय- न तूर्यस्थलं एवं हृतः । (सम्य० १३७ ) चित्त (जयो० २७ / १८) (जयो० २ / ६१ ) हृदयज हृतः (भू०क० कृ० ) [ह+क्त] अपहत, ले जाया गया, विभक्त। हृत्कम्पकर (वि०) चित्त कम्पोत्पादक। (जयो० २७ / १८ ) हृत् प्रदीप (पुं०) मुदित दीपक (जयो० १७/६५) हृतसतत् (वि०) हृदय की विशेषता । (सुद० १२१ ) हृतान्धकार ( वि० ) अन्धकार हरण करने वाला। (जयो० ५/१०५) हृद् (पुं० ) [ हृदयस्य हृदादेशो वा ] ० हृदय-संवेग भावो हृदयं प्रपुष्य। (सम्य० ७५) ० निजनिजान्तरङ्ग (जयो० ४/५०) 'सविद्धि सिद्धप्रिय भी हदा त्वं (सम्य० १५) ० चित्त, मन, इदोऽनुकूल। (जयो० ३ / ९४) पयोनिधिस्त्वद् हृदि वाप्यवार (सुद०२/१६) ० छाती, सीना, यक्ष । o ० चेत- चित्त । (जयो० ९ / ४३ ) ० मानस । (जयो० १५/४९) हृद्कम्पः (पुं०) धड़कन, हृदयगति । हृद्गत ( वि०) मन में सोचा हुआ । हृदग्रन्थि (वि०) माया (जयो० १७/६९) हृदनुतप्त (वि०) संताप युक्त हृद् हृदयं चेदनुतप्तं सन्ताप युक्तं (जयो० ९/४३) ८८, १०८) हृदन्त (वि०) अन्तर्हृदय (जयो० २३ / ४० ) हृदब्जम् (नपुं०) मानस कमल 'हदेव अब्जं तस्मिन् मानसकमले ' (जयो० ९/४५) हृदर्पणम् (नपुं०) प्रतिदान (जयो० १२ / ९० ) हृदयम् (नपुं०) [ह्र+कयन् ] चेतस्, मानस, मन, चित्त । (सुद०) For Private and Personal Use Only ० सीना, छाती। • वक्षस्थल (जयो० ५/४५) हृदयकमलं (नपुं०) प्रफुल्लमन (जयो० १/४९) । हृदयकम्पः (पुं० ) ० चित्त धड़कन हृदयकम्पनम् (नपुं०) धड़कन, चितप्रकम्पन। ( सुद०१३४) हृदयग्राह्य (वि०) मन के योग्य (जयो०वृ० ३/३६) हृदयचोर : (पुं०) दिल चुराना। हृदयछिद् (वि०) हृदय विदारक, मनस् पीड़ा युक्त। हृदयज (वि०) हृदय सम्बंधी
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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