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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वाम्यम् १२३३ स्वेदकण: स्वाम्यम् (वि०) [स्वामिन्+ष्यञ्] स्वामित्व, प्रभुता, मालिकपना। • स्विदिति सन्देह द्योतकं पदम् (जयो० ५/८७) स्वायंभुव (वि०) ब्रह्मा से सम्बंधित। ० किन्तु (जयो० २/५७) स्वायंभुवः (पुं०) आदिनाथ, आदिब्रह्मा। ० श्वेत, शुभ्र। (मुनि० ९) स्वायंवरी (वि०) स्वयंवर से सम्बंधित। (जयो० २०/३०) ० क्या है? ऐसा भी हो सकता है। स्वारसिक (वि०) [स्वरस+ठक्] काव्यगत रस युक्त। ० प्रश्नात्मक अव्यय। स्वारस्य (वि०) श्रेष्ठता, लालित्य। ० पृच्छात्मक अव्यय। स्वारुक् (वि०) दिव्य रूप वाली। (जयो० ११/५२) स्विद् (अक०) स्वेद आना, पसीना आना। (जयो० ३/८३) स्वार्थः (पुं०) अपना निजी हित, लम्पटता, अपना कल्याण। ० विशुब्ध होना। (सुद०७५) स्वीकार करना। (जयो०१/५५) स्वार्थस्येयं पराकाष्ठा (सुद० १२८) स्विदर्कः (पुं०) वास्तव में सूर्य। बभूव तच्चेतसि एष तर्कः स्वार्थकृत् (वि०) स्वार्थपूर्ति करने वाला। (सुद० १०५) प्रतीयते तावदयं स्विदर्कः। (वीरो० १४/२३) स्वार्थता (वि०) स्वार्थ भावना जन्य। (दयो० ३७) स्विदपांशुल (वि०) शील व्रतधारिणी, स्विदपि पुनरपांशुलस्य, स्वार्थपर (वि०) स्वार्थ में तत्पर। (वीरो० १६/८) न पांशु धूलि लाति स्वीकरोतीति (जयो० १९/१८) स्वार्थपरायणं (नपुं०) स्वार्थ से परिपूर्ण भाव। स्व-चक्षुषा स्विदहीन (वि०) रज रहित, शोभा युक्त। (जयो० १८/१९) स्वार्थपरायणां स्थितिं निभालयामो जगतीदशीमिति। स्विन्नदशानुवर्तिन् (वि०) प्रस्वेददशानुवर्ती। (वीरो० १२/२७) (वीरो०८/३) स्विन्ना (वि०) स्वेदन शीला, स्वेदयुक्ता। (जयो० २२/३२) ० स्वार्थी जन। (जयो० ५१) स्वीकरणम् (नपुं०) स्वीकार करना, लेना, ग्रहण करना। स्वार्थपरायणत्व (वि०) अपने हित में लीनता। (सुद० १०८) ___० वाग्दान, पाणिग्रहण। (जयो० २/६५) स्वार्थभावः (पुं०) अपने कल्याण का भाव। (सुद० ११०) स्वीकार्यक (वि०) ग्रहण, लेना, अंगीकार करना, आप्य, प्राप्य। स्वार्थभृत (वि०) स्वार्थ युक्त। (जयो० १४/८३) स्वीक्रिया (स्त्री०) ग्रहण करना। (सुद०८१) स्वार्थसमर्थनम् (नपुं०) स्वार्थपूर्ति की पुष्टि। (दयो० ११८) स्वीकृ (सक०) स्वीकार करना, पाणिग्रहण करना, अंगीकार स्वार्थसिद्धिः (स्त्री०) अपना उल्लू सीधा करना। (हित०सं०९) करना। (सुद० ७६) (जयो० ३/१०२) स्वार्थाच्चुतिः (स्त्री०) स्वार्थ से भ्रष्ट होना। 'स्वार्थाच्चुतिः (जयो० २/९५) स्थितः स्वीकुरुते स्म सेवाम्। (वीरो०१३/८) स्वस्य विनाशनाय' (वीरो० १७/११) स्वीकृतवती (वि०) स्वीकार की गई। (जयो० ६/१२०) स्वालक्षणम् (वि०) विशेष लक्षण वाला। स्वीकृतवान् (वि०) स्वीकार करने योग्य। (जयोवृ० १/३०) स्वाल्प (वि०) थोड़ा सा, अल्पमात्र। स्वीकृतालङ्कारः (पुं०) ० शोभा युक्त आभूषण, अच्छे-अच्छे स्वास्थ्यम् (नपुं०) [स्वस्थ ष्यञ्] ० तन्दुरुस्ती, निरोगता। वस्त्राभूषण। ० कुशलक्षेम, सुख समृद्धि। (जयो०२) स्वीकृति (स्त्री०) अनुमति। (जयो० २/१५) (जयो० ५/११) ० नीरुज। (जयो० ७/८४) स्वीय (वि०) अपना, निज। (वीरो० ९/३) आत्मीय, निजीय। ० आत्मनिर्भरता, दृढ़ता। (सुद०१/१) स्वास्थ्यप्राप्तिः (स्त्री०) लाभप्राप्ति, नीरुज भाव। स्वास्थ्यप्राति- स्वीयगुणार्जनम् (नपुं०) आत्मीय गुणों की प्राप्ति। (भक्ति० ४२) रिवोच्यते बुधजनै वैद्यस्य हत्वा व्रणम्। (मुनि०३१) स्वीयम (वि०) आत्मीय, निज। (जयो० २३/७९, सुद० ४/४३) स्वालम्बनम् (नपुं०) आत्माधीन, अपने आप पर निर्भर, स्वृ (अक०) शब्द करना, कोलाहल करना। क्रियाशील, आत्मशक्ति का आश्रय। (सुद० ७४) चोट पहुंचाना। स्वाहा (स्त्री०) [सु+आ+ह्वे+डा] आहूति। ० सन्तर्पण। स्वेक् (अक०) जाना, प्राप्त होना। इत्यादिमयः स तृप्तिसार्थः सन्तर्पणकारकः। (जयो०७० | स्वेच्छाविहार (वि०) स्वतंत्र विचरण। एकाकी विहार। १२/७२) (जयो० १३/१०८) स्वित्/स्विद् (अव्य०) थोड़ा, अल्प भी। (जयो० ४/१०) स्वेदः (पुं०) [स्विद् भावे घञ्] पसीना, श्रमबिन्दु। 'यास्यतीव हि भवान् स्विददीनं' स्वेदकणः (पुं०) पसीने के कण, श्रमबिन्दु। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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