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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra स्वर्णकारः स्वर्णकारः (पुं०) सुनार, कलार (जयो०वृ० ६/७४) स्वर्णगौरिकम् (नपुं०) गेरु, लाल खड़िया । स्वर्णचूडः (पुं०) नीलकण्ठ । О मुर्गा, कुक्कट। स्वर्णजम् (नपुं०) रांगा । स्वर्णदा (वि०) आकाश गंगा (जयो० ७/ १०१ ) स्वर्णदी (स्त्री०) आकाश गंगा, व्योम गंगा (जयो० ३ / ११२) www.kobatirth.org (जयो० १६/८२) स्वर्णयोगः (पु० ) सोने का संयोग । स्वर्णरेखा (स्त्री०) सोने की लकीर, स्वर्णपंक्ति। स्वर्णवणिज् (पुं०) सोने का व्यापारी ० सर्राफ । स्वर्णत्व (वि०) सुवर्णपना (सुद० १३३) स्वर्णदीधिति: (स्त्री०) अग्नि, आग। स्वर्णदीपयस् (पुं०) स्वर्णदीप। (जयो० ७/१०१) स्वर्णदीसलिलम् (नपुं०) आकाशगंगा का जल । सुमेरुपर्वत शिलातल। (जयो० ३ / १०४) o स्वर्णपक्षः (पुं०) गरुड़ पक्षी । स्वर्णपाठकः (पुं०) सुहागा। स्वर्णपुष्प (पुं०) चम्पक वृक्ष । स्वर्णबन्धः (पुं०) सोना गिरवी रखना । स्वर्णभृङ्गारः (पुं०) स्वर्ण पात्र स्वर्णमय (वि०) हैमतुल्य (जयो०वृ० ११ / १५) स्वर्णमाक्षिकम् (नपुं०) स्वर्ण मक्खी । स्वर्णमेखला ( स्त्री०) सोने की करधनी, हेमसूत्रावली । स्वर्णवर्णा ( स्त्री०) हल्दी | स्वर्णशैल: (पुं०) सुमेरु पर्वत (जयो० ३ / १०४ ) स्वर्णाक्षरम् (नपुं०) सोने के अक्षर। (जयो०वृ० २० / ७५) स्वर्द (अक० ) चखना, आस्वाद लेना। स्वर्लोकः (पुं०) स्वर्ग लोक (जयो० ६ / १३२) १२३० स्वल् (अक० ) जाना, हिलना ठुलना। स्वल्प (वि०) [सुष्ठु अल्पं बहुत छोटा, बहुत कम। स्वल्प- कङ्कः (पुं०) एक पक्षी। स्ववंश (पुं०) निजकुल। (जयो० १/४३) स्ववपुष (नपुं०) अपना शरीर (सुद० ९८ ) स्ववृत्तिः (स्त्री० ) अपनी आजीविका (वीरो० १७/९) स्ववार्तिकः (पुं०) श्लोक वार्तिक नामक न्याय ग्रन्थ मीमांसक कुमारभट्ट की वृत्ति (वीरो० १९ / १९) १९/१९) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्व-वासनाभिव्यक्ति (स्त्री०) अपनी वासना की अभिव्यक्ति । (जयो०वृ० १२ / ११४) स्वशक्तिः (स्त्री०) आत्मबल (सुद० १११ ) स्वल्पकर (पुं० ) थोड़ा कर अल्पअंश दान। 1 स्वल्पखण्डः (पुं०) लघु भाग । स्वल्पघात (वि०) थोड़ी सी हानि। स्वल्पजात (वि०) अल्प उत्पत्ति वाला। स्वशिष्यः For Private and Personal Use Only स्वल्पतर (वि०) तनीयसी । (जयो० वृ० १३ / ४१ ) स्वल्पतप (वि० ) थोड़े तप वाला । स्वल्पदानम् (नपुं०) अल्पदान, किञ्चित् दान। स्वल्पधनम् (नपुं०) थोड़ा सा धन । स्वल्पधर्मन् (वि०) किंचित धर्म युक्त । स्वल्पनन्दिन् (वि०) अल्प हर्ष युक्त। स्वल्प-पल्लवम् (नपुं०) अल्प पत्र (सुद० ११२) निष्फललतेव विचाररहिता स्वल्पपल्लवच्छाया। (सु० ११२ ) स्वल्पफलम् (नपुं०) किंचित् फल। स्वल्पभाव: (पुं०) थोड़ा परिणाम । स्वल्पमति (स्त्री०) मूढमति । स्वल्पमोह (वि०) किंचित् मोह युक्त। स्वल्पपलम् (नपुं०) थोडा प्रयत्न । स्वल्पयोगः (पुं०) योग की कमी। स्वल्पराग (वि०) किंचित् भी राग जन्य । स्वल्पलालिमा (स्त्री०) किंचित भी अनुराग । स्वल्पशरीर (वि०) ठिगने शरीर वाला। स्वस्वभाव: (पुं०) निज आत्म भाव। (जयो० २ / २९ ) स्वस्थानाङ्कित (वि०) अपने स्थान की पहचान करने वाला। (जयो० २ / १२३ ) स्वस्तिक्रिया (स्त्री०) शोभनक्रिया, स्वस्तिपाठ (जयो० १८/२) स्वल्पसंयोग (वि०) थोड़ा सा भी योग स्वल्पिष्ठ (वि० ) [ स्वल्प + इष्टन् ] अत्यन्त सूक्ष्म । स्वल्पाभावः (पुं०) लघिमा | (जयो०वृ० ४ / ६६ ) स्वल्पीयस् (वि० ) [ स्वल्प+ईयसुन्] अपेक्षाकृत छोटा स्ववश (वि०) अपने आधीन (जयो० २ / ८४ ) स्ववाहिनीभूत (वि०) अपने वाहन पर स्थित (जयो० ११/२६) स्वव्यापिन् (वि०) अपने स्वभाव में व्याप्त (वीरो० १९/१९) स्वविभवः (पुं०) अपनी सम्पत्ति । (सुद० ४/४७) (मुनि०१५) स्वशय (वि०) अपने हाथों से सुलाई गई। (सुद०३/२३) स्वशिष्यः (पुं०) प्रधानशिष्य, प्रमुख शिष्य (वीरो० २१ / २४)
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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