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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वनिर्वाहिक १२२७ स्वप्ननिकेतनम् स्वनिर्वाहिक (वि०) निर्दोष प्रवृत्ति वाला। (मुनि० ८) स्वपक्षः (पुं०) ० आत्म पक्ष, ० अपना समूह। स्वनिवासयोग्यः (पुं०) राजकीय सदन। (जयो०वृ० ४/२६) ___ अपनी बात। (वीरो०वृ० २/१९) स्वतंत्र (वि०) आत्माश्रित, आत्मनिर्भर। स्वाधीन (जयो० २/६१) | स्वपक्षपरिरक्षणम् (नपुं०) अपने पक्ष का समर्थन, अपने ० पृथक्-पृथक् (सम्य० २१) जीवाश्च केचित्त्वणवः मत की सुरक्षा। (वीरो० २२/१९) स्वतन्त्राः। स्वपदम् (नपु०) आत्म चरण। (जयो० ६/४८) ० अनियन्त्रित, स्वेच्छाचार। स्वपरप्रकाशकः (०) स्व और पर को प्रकाशक करने स्वतन्त्रवृत्तिः (स्त्री०) आत्मनिर्भर प्रवृत्ति स्वाधीन वृत्ति, वाला। आत्मज्ञानपना, अपनी बोधता। (जयोवृ० १/८५) आत्मधीन गति। स्वतन्त्रा वृत्तिर्व्यवहारो यस्य (वीरो० ०प्रमाणाश्रितविषयं, निर्णयात्मक, ०व्यवसाय। ४/५७) स्वतन्त्रवृत्तिः प्रतिभातुः सिंहवद्र मात्मवच्छ- स्वपरमण्डल (नपुं०) अपना और दूसरे का क्षेत्र। श्वदखण्डितोत्सवः। (वीरो० ४/५७) स्वपाणि (नपुं०) अपना हाथ। (वीरो० १६/४) स्वतितारः (पुं०) उच्च स्तार, समुन्नत भाव। (जयो० १३/३५) स्वपुरं (नपुं०) अपना नगर। (जयो० ३/११६) स्वत्वम् (वि०) अपनी विद्यमानता, स्वामित्क। स्वपूर्वजन्मन् (नपुं०) अपना पूर्वजन्म, पूर्वभव, पूर्व पर्याय। स्वद् (अक०) मधुर होना, रुचिकर होना। (समु० ४/२२) ० स्वाद लेना, खाना। स्वपुजः (पुं०) ज्ञातिजन-स्वं ज्ञातिजनं पुष्णातीति। (जयो० ० चखना, खाना। ६/२७) ० उपभोग करना। स्वप्रकाश (वि.) स्वतः स्पष्ट, अपने आप प्रतिभासित। स्वदनम् (नपुं०) [स्वद+ल्युट्] चखना, स्वाद लेना, रसास्वदन | स्वप्रतिपत्तिः (स्त्री०) अपनी सुंदर चेष्टा। करना। निजबन्धुजनस्य सम्मदाम्बुनिधि स्वदारा (स्त्री०) अपनी स्त्री। (सुद० १०८) स्वप्रतिपत्तितस्तदा। (सुद० ३/२७) स्वदारसंतोव्रतम् (नपुं०) श्रावकव्रत का भेद, जिसमें श्रावक | स्वप्रयोगात् (अव्य०) अपने प्रयोग से निज प्रयत्न से। ___ एक पत्नी व्रतधारी होता है। (सुद० १११) स्वप्राणेश्वरः (पुं०) पति। (सुद० ११३) स्वदित (भूक०कृ०) आस्वादित, चखा गया, खाया गया। स्व:पुरी (स्त्री०) एक नगरी। (दयो० १/१०) स्वदेशः (पुं०) जन्म स्थान, अपना देश, निज भूक्षेत्र। स्वप्रेष्ठ (वि०) परमप्रिय, अतिशय प्रेमाधिक्य। (जयो० ३/११६) स्वदृक् (नपुं०) अपने नेत्र। (सुद०६९) स्वप् (अक०) सोना, शयन करना। स्वधर्मः (पुं०) अपना धर्म, आत्मनिष्ठा। (सम्य० १/३) ० लेटना, विश्राम करना, आराम करना। स्वधृत (वि०) अपने द्वारा धारण किया गया। (जयो० ९/४८) ० तल्लीन होना, ध्यानस्थ होना। स्वन् (अक०) शब्द करना, ध्वनि करना, शोर मचाना, स्वप्नः (पुं०) [स्वप्+नक्] शयन विकल्प। (जयो० २२/५८) कोलाहल करना। ० गाना। ० कदाचित्, निन्द्रागत होना। स्वनजित (वि०) कण्ठध्वनि से पराभूत, स्वर-माधुर्य तिस्कृत। ० आलस्य दशा, निन्द्राभाव। (सुद० ९९) (जयो०६/७) क्षणभूरास्ताय न स्वप्नेऽप्युत। स्वनिः (स्त्री०) ध्वनि। स्वप्नकर (वि०) निन्द्राजन्य। स्वनिक (वि०) [स्वन+ठक्] शब्द करने वाला, शोर मचाने स्वप्नकृत् (वि०) ०स्वप्नजन्य, निन्द्रा युक्त। वाला। स्वप्नगृहम् (नपुं०) शयनकक्षा स्वनित (भूक०कृ०) ध्वनित, गुंजित, कूकित, कोलाहल स्वप्नजात (वि०) निन्द्रावस्थागत। जन्य। स्वप्नदोषः (पुं०) शुक्रपात, शयन में होने वाला वीर्यक्षरण। स्वनिर्मित (वि०) अपने द्वारा बनाया गया। (जयो० २/१३५) स्वप्नधीगम्य (वि०) शयन में बुद्धिगत अनुभूति वाला। स्वनिभ (वि०) प्रसन्न, हर्षित। (जयो० १३/७४) स्वप्ननिकेतनम् (नपुं०) शयनकक्ष शय्यागृह। For Private and Personal Use Only
SR No.020131
Book TitleBruhad Sanskrit Hindi Shabda Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherNew Bharatiya Book Corporation
Publication Year2006
Total Pages445
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size23 MB
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